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अध्याय 19 ]
दक्षिण भारत की आयोजना और रूप-प्रकार पर आधारित है। ये रूप हैं - चौकोर, अष्टभुजी अथवा बहुभुजी और वृत्तीय या वक्ररेखीय।
ये तीनों ही विमान अपने अर्ध-मण्डपों के द्वारा संयुक्त महा-मण्डप से जुड़े हुए हैं। विमान की प्रत्येक भित्ति पर आधार से शीर्ष तक छह चतुर्भजी अर्ध-स्तंभ हैं। पल्लव, मुत्तरैयार और गंग मंदिरों की शैलीगत विशेषता के अनुसार इनके सरदलों पर हंसों की शिल्पाकृतियाँ हैं। प्रक्षिप्त एवं वक्राकार कपोत पर तीन पंक्तियों में तीन-तीन कंगरों सहित कुड-तोरण हैं और सबके शीर्ष पर अंतिम स्तर के रूप में व्याल-माला अंकित है। प्रत्येक अोर के केंद्रीय अर्ध-स्तंभ के शीर्ष पर तोरण से आच्छादित देवकोष्ठ में तीर्थंकर-प्रतिमा विराजमान है । तोरण विभिन्न प्रकार के हैं, यथा पत्र-तोरण, या पुष्प-पल्लवों की माला, चित्र-तोरण जिसमें पशु-पक्षी तथा धनुषाकार भुजाओं में अंकित व्यालआरोही सम्मिलित हैं एवं विद्याधर-तोरण जिसमें उड़ते हुए विद्याधरों की शिल्पाकृतियाँ हैं। इनमें अंतिम तोरण-प्रकार दक्षिणेतर मंदिरों में बहत कम पाया जाता है।
अर्ध-मण्डप में इसी प्रकार के देवकोष्ठ हैं। चौकोर पावृत मुख-मण्डप में भी पूर्वोक्त विमानों और उनके अर्ध-मण्डपों के समान अर्ध-स्तंभ हैं । चालुक्य-शैली के सेलखड़ी के गोल स्तंभों का खुला हुआ अग्र-मण्डप महा-मण्डप के सामने बाद में जोड़ दिया गया। महा-मण्डप के भीतर प्रचलित पल्लवशैली के चार केंद्रीय स्तंभ हैं जिनके कलश-शीर्षयुक्त दण्ड चौकोर आधार और सुदृढ़ पद्मपीठों पर अवस्थित हैं । अन्य आठ स्तंभ मण्डप-शैली के हैं जो नीचे और ऊपर चौकोर शदुरम और मध्य में अष्टकोणीय कट्ट से युक्त हैं । मध्यवर्ती चार और उनके समीपवर्ती आठ स्तंभों की आयोजना नवरंग-शैली की प्रतीत होती है जिसकी मूल उत्पत्ति चालुक्य-शैली से हुई है। शैलियों का यह रचनात्मक सादृश्य और अधिक स्पष्ट होता है-केंद्रीय वीथि की छत के शिलापट्ट के छोरों पर दिक्पालों के अंकन से तथा उनके मध्य में द्विभुजी धरणेन्द्र-यक्ष की प्रतिमा से, जो कोदण्डधारी राम के समान धनुष पकड़े और मुँह से शंख बजाने को उद्यत-मुद्रा में अंकित है। यक्ष के सिर पर पंचफण नाग-छत्र है। दोनों ओर चमरधारी हैं। मध्यवर्ती मंदिर महावीर को समर्पित है जो अलंकृत सिंहासन पर आसीन हैं और उनके दोनों ओर चमरधारी हैं। बाहर प्रत्येक विमान के सरदल के ऊपर का हार वेदिकानों पर अवस्थित है; कोनों पर चार कर्णकूट और चारों दिशाओं में चार भद्रशालाएँ हैं।
दूसरे तल की रचना अधिक सामान्य है। इसकी प्रत्येक हर्म्य-भित्ति पर चार-चार अर्ध-स्तंभ हैं। प्रत्येक ओर मध्य के दो अर्ध-स्तंभ कुछ आगे को निकले हुए हैं और उनपर तोरणों से आच्छादित देवकोष्ठ निर्मित हैं।
नीचे के तल की भाँति सरदल पर हंस-बलभी बनी हुई है। दूसरे तल के हर्म्य-प्रस्तर के ऊपरी भाग पर व्याल-माला की चित्र-वल्लरी है और कोनों पर उकड़ बैठे हुए चार सिंहों को स्थापित किया गया है। केवल ग्रीवा से ऊपर ही तीनों विमानों की भिन्न निमिति दिखाई पड़ती है। मध्यवर्ती
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