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बास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 1300 से 1800 ई०
[भाग 6 कोई एक भाग पर ही नहीं वरन् उसका समूचा रूप ही विशिष्ट है, जिसके लिए जेम्स फर्ग्युसन द्वारा उसकी की गयी प्रशंसा यहाँ उद्धृत की जा सकती है। फर्ग्युसन के अनुसार: 'इसके अनेकानेक मंदिर और इन भागों के सामान्यत: लघु आकार यद्यपि इस मंदिर के एक स्थापत्यीय वैभवपूर्ण संरचना होने के दावे में बाधक हैं परंतु इन भागों की विविधता, प्रत्येक स्तंभ पर किया गया
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FEET रेखाचित्र 23. रणकपुरः युगादीश्वर-मंदिर की रूपरेखा (कजिन्स के अनुसार) एक दूसरे से सर्वथा भिन्न सूक्ष्मांकन का सौंदर्य, उनका व्यवस्था-क्रम, उसकी मोहकता, सपाट छतों पर विभिन्न ऊँचाईयों के गुंबदों का सुरुचिपूर्ण समायोजन तथा प्रकाश के लिए बनायी गयी संरचनाओं की विधि--ये समस्त विशेषताएँ मिलकर एक अत्युत्तम प्रभाव की सष्टि करती हैं। जहाँ तक मुझे ज्ञात है, भारत में वस्तुत: इस प्रकार का कोई अन्य मंदिर या भवन नहीं है जिसके अंतर्भाग में स्तंभों का इतना लावण्यपूर्ण संयोजन रहा हो और उसकी संरचना कुल मिलाकर इस मंदिर की भाँति प्रभावोत्पादक रही हो।'
1 फग्यूसन (जेम्स), पूर्वोक्त, पृ 47-48.
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