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________________ अध्याय 27 ] मध्य भारत कला के प्राचीन केंद्र विदिशा में इस काल में भी मंदिर और मूर्तियों का निर्माण होता रहा। यहाँ नाग-नागियों और यक्ष-यक्षियों की इस काल की मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं। उसी जिले के बडोह और पठारी में अनेक जैन मंदिर और कुछ उत्कृष्ट पाषाण-मूर्तियों का निर्माण हुआ। भोपाल जिले के भदभदा के समीप समसगढ़ में तेरहवीं शताब्दी की कुछ विशाल तीर्थंकरमूर्तियाँ और स्थापत्य संबंधी शिल्पांकित शिलाखण्ड प्राप्त हुए हैं। विंध्य क्षेत्र (बुंदेलखण्ड और बघेलखण्ड) में मध्यकाल में तक्षण-कला के क्षेत्र में जैनों ने अत्यधिक कार्य किया । देवगढ़, थबोन, सोनागिरि, द्रोणगिरि, कुण्डलपुर, पपौरा, अहार, रहली, बीना-बारहा बानपुर, बरहटा, पजनारी तथा अन्य अनेक स्थान उल्लेखनीय हैं जहाँ कला के क्षेत्र में व्यापक कार्य संपन्न हुआ। थूबोन, कुण्डलपुर, बीना-बारहा और अहार में बारहवीं शती के अनंतर बहुत समय तक निर्माण कार्य चलता रहा । सागर जिले में सागर से दक्षिण-पूर्व में ७५ किलोमीटर पर बीना-बारहा सुखचैन नदी के तट पर स्थित है। वहाँ दो मंदिर और एक गंधकुटी है। पहला मंदिर चंद्रप्रभ का है। मूलनायक की मूर्ति की स्थापना १७७५ ई० में भट्टारक महेंद्रकीत्ति ने करायी थी। इस मंदिर में महावीर की एक मूर्ति ४ मीटर ऊँची है। दूसरा मंदिर शांतिनाथ का है, उसका निर्माण १७४६ ई० में हुआ था। इसमें स्थापित शांतिनाथ की खड़गासन मूर्ति ५ मीटर से भी ऊँची है । गंधकुटी बहुत ऊँचाई पर स्थित है। अहार टीकमगढ़ से २० किलोमीटर पूर्व में है। इस तीर्थक्षेत्र को चंदेल शासकों ने सुरुचिपूर्वक सँवारा था; उन्होंने यहाँ अनेक मंदिरों और सरोवरों का निर्माण कराया। यहाँ के वर्तमान मंदिरों का निर्माण ग्यारहवीं और उसके बाद की शतियों में हुआ। शांतिनाथ तथा अन्य तीर्थंकरों और बाहुबली के मंदिरों के अतिरिक्त यहाँ अनेक मान-स्तंभ भी हैं। मूर्तियों के पादपीठों पर उत्कीर्ण अभिलेखों से जैनों की बहुत-सी शाखाओं का परिज्ञान होता है जिन्होंने इस स्थान के विकास में योग दिया। अहार में एक संग्रहालय की स्थापना की गयी है। टीकमगढ़ के समीप बानपुर में सर्वतोभद्र-सहस्रकूट की रचना है जिसकी प्रत्येक दिशा में एक द्वार है। नागर-शैली का यह मंदिर एक मीटर ऊँचे चतुष्कोणीय अधिष्ठान पर निर्मित है। अलंकृत स्तंभ, छतें, गर्भगृह और उत्तुंग शिखर--इस मंदिर की समूची संयोजना वास्तव में ध्यान देने योग्य है। दी-देवियों, नवग्रहों और पुष्प-वल्लरी की संयोजना भी उत्कृष्ट अलंकरणों के साथ की गयी है। आदिनाथ, सरस्वती और अन्य देव-देवियों की मूर्तियों का अंकन सुरुचिपूर्ण है। टीकमगढ़ के समीप पपौरा और नवागढ़ नामक दो तीर्थक्षेत्र और भी हैं। छतरपुर जिले का द्रोणगिरि भी एक महत्त्वपूर्ण सिद्ध-क्षेत्र है। इस क्षेत्र में प्राकृतिक सुषमा बिखेरती पहाड़ियों पर तीस जैन मंदिर हैं। इनका निर्माण १४८३ ई० और १५३६ ई० के मध्य हया । 357 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001959
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size26 MB
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