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अध्याय 25]
उत्तर भारत मध्य देश (गंगा-जमुना की घाटी) के जैन मंदिर अधिकांशतः सत्रहवीं शताब्दी के हैं; या फिर
रवर्ती काल के। इन मंदिरों में स्थित प्रतिमाएँ अधिकांशतः पूर्ववर्ती काल की हैं। इनमें से अनेक मंदिरों का उत्तरवर्ती काल में पुनर्निमाण अथवा विस्तार भी हुआ है । स्थापत्यीय दृष्टि से इन मंदिरों में पूर्वकालीन स्थापत्य-कला-परंपराओं का सीमित प्रभाव भी परिलक्षित होता है। इस समय जो मंदिर सुरक्षित बच रहे हैं उनमें से कुछेक मंदिर ही हमारे ध्यान को आकर्षित कर पाते हैं। इनमें से अयोध्या, वाराणसी, त्रिलोकपुर, शौरीपूर और फिरोजाबाद के मंदिर उल्लेखनीय हैं।
तीर्थंकर आदिनाथ के जन्मस्थल होने के कारण अयोध्या को प्रमुख जैन तीर्थों में परिगणित किया जाता है। प्रारंभिक काल में यहाँ पर अनेक मंदिर रहे होंगे लेकिन इस समय जो मंदिर बच रहे हैं उनमें से एक ही मंदिर उल्लेख करने योग्य है, जिसे कटरा कहा जाता है। इसमें अनेक जैन प्रतिमाएँ हैं। सबसे प्राचीन प्रतिमा विक्रम संवत् १२२४ की है। अन्य प्रतिमाओं पर जो अभिलेख हैं उनके अनुसार उनका समय विक्रम संवत् १५४८ तथा १६२६ है। यह मंदिर अठारहवीं शताब्दी का है। इसके प्रांगण में सुमतिनाथ के चरण-चिह्नों पर निर्मित टोंक (चित्र २२१ ख) पर जो अभिलेख मिला है उसमें विक्रम संवत् १७८१ का उल्लेख है। इस मंदिर में गर्भगृह के ऊपर चार सतहवाला शंक्वाकार शिखर है जिसकी बाह्य संरचना पर लहरदार अलंकरण है। टोंक की रचना अष्टकोणीय है जिसके ऊपर एक छोटा-सा गुंबद है । यहाँ पर तीर्थंकरों के कुछ अन्य टोंक भी हैं लेकिन उनमें से कोई भी कलात्मक दृष्टि से उल्लेखनीय नहीं है ।
बाराबंकी जिले में त्रिलोकपुर स्थित पार्श्वनाथ का मंदिर भी उल्लेखनीय है जिसका प्रासाद अष्टकोणीय है, शिखर शंक्वाकार है जिसके आधार में टोड़े (चित्र २२५) लगे हुए हैं तथा शिखर के आधार की निचली सतह की भित्ति पर छोटे-छोटे तोरणदार माले बने हुए हैं। शैलीगत रूप में यह मंदिर लखनऊ की स्थापत्य-शैली से प्रभावित हैं; फलत: इसका रचनाकाल उन्नीसवीं शताब्दी का प्रारंभिक काल निर्धारित किया जा सकता है । इस मंदिर की पार्श्वनाथ-प्रतिमा कुछ पूर्ववर्ती है।
पार्श्वनाथ की जन्मभूमि होने के कारण वाराणसी सुप्रसिद्ध जैन तीर्थ-स्थल रही है । ऐसा विश्वास किया जाता है कि भेलुपुरा में जिस स्थान पर पार्श्वनाथ का मंदिर है, उसी स्थान पर पार्श्वनाथ का जन्म हुआ था । विक्रम संवत् १६१६ के लिखे एक ग्रंथ में प्राप्त इस मंदिर के उल्लेख से ज्ञात होता है कि इस मंदिर का निर्माण अकबर के शासनकाल में हुआ था। परंतु वर्तमान मंदिर बहुत उत्तरवर्ती है क्योंकि इसकी शैली उत्तरवर्ती पतनोन्मुखी मुगल शैली (चित्र २२६) के समरूप है, जो बहुत समय बाद की है। उत्तरवर्ती मध्यकाल की जैन प्रतिमाओं का इस मंदिर में एक उत्तम संग्रह है।
1 भारत के दिगंबर जैन तीर्थ. प्रथम खण्ड. संपा. जैन (बलभद्र). 1974. बम्बई. पृ 129.
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