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________________ वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 1000 से 1300 ई. [ भाग मध्यवर्ती अंकन स्तंभों पर आधारित है और उस पर तीन मीटर-वर्ग की एक शिला रखी गयी है। उसके अभिलेख में वत्तांत है कि इस मंदिर का निर्माण नरसिंह-प्रथम (११४१-७३ ई.) के कोषाध्यक्ष हुल्ले ने ११५६ ई० में कराया था और कहा गया है कि इस मंदिर के लिए इस राजा ने भव्य-चूड़ामणि नाम दिया था और उसके संरक्षण के लिए सवनेरु नामक ग्राम का दान किया था। श्रवणबेलगोला में होयसल-शैली का एकमात्र यथार्थ प्रतिनिधि अक्कण्ण-बस्ती (चित्र २०५ क) है, जबकि अन्य प्रायः सभी गंग-शैली के हैं। इसमें भी गर्भगृह, अर्ध-मण्डप, नवरंग, मुख-चतुष्की, पार्श्व-भित्तियाँ और कक्षासन हैं। गर्भगृह में १.५ मीटर ऊँची पार्श्वनाथ की मूर्ति है । अर्ध-मण्डप में पार्श्वनाथ के यक्ष और यक्षी की मूर्तियाँ हैं । स्तंभों पर भव्य शिल्पांकन है और रंग-मण्डप की छत का अलंकरण आकर्षक बन पड़ा है। बाह्य भित्ति समतल है, केवल उसके भित्ति-स्तंभों और स्तंभ-पंजरों की चूलिका पर लघु शिखर-अभिप्राय हैं। इसका शिखर भी बहुत समतल है; यद्यपि यह बहुतल-अर्पित शिखर है तथापि चतुष्कोणीय शिखर और स्तूपी के साथ यह होयसल-शैली ही विशेषता लिये हुए है । इस मंदिर का निर्माण ११८१ ई. में चंद्रमौलि की पत्नी जैन महिला अचियक्क ने कराया था, वह बल्लाल-द्वितीय का एक ब्राह्मण मंत्री था। इससे व्यक्त होता है कि शासकीय अधिकारियों की पत्नियों द्वारा अपने पतियों के धर्म से भिन्न धर्म के लिए भी बिना किसी मतभेद के संरक्षण दिया जाना कितनी साधारण बात थी । हासन जिले के अन्य मंदिरों में से अग्रलिखित का उल्लेख किया जा सकता है । बस्ति-हल्ली का पार्श्वनाथ-मंदिर होयसल-शैली का है जिसके समा-मण्डप में उत्तम पालिशवाले कृष्ण पाषाण से निर्मित चौदह स्तंभ हैं। प्रवेश-द्वार के दोनों ओर एक-एक उत्कीर्ण गज स्थापित हैं। उसके समीप स्थित और उससे छोटा, किन्तु कदाचित् उससे प्राचीन, आदिनाथबस्ती दक्षिण की विमान-शैली में है, और उसी के समीप स्थित शांतिनाथ-बस्ती होयसल शैली में है । वहाँ एक मान-स्तंभ है जिसके शीर्ष पर एक सुसज्जित अश्व पूर्व की ओर उछाल भरता हुआ निर्मित है। मर्कुली की पंचकूट-बस्ती बल्लाल-द्वितीय के समय की है जिसका निर्माण उसके एक मंत्री बुच्चिमय्य ने ११७३ ई० में कराया था । उसमें आदिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ, पुष्पदंत और सुपार्श्वनाथ की मूर्तियाँ स्थापित हैं। उसमें द्वादशभुजी यक्षी चक्रेश्वरी की मूर्ति भी है। यह आरंभिक होयसल-शैली में है। हलेबिड में एक ही प्राचीर में तीन विशाल मंदिर हैं। सबसे पश्चिम में पार्श्वनाथ-मंदिर है जिसके सभा-मण्डप में ४.३ मीटर ऊंची एक उत्तम कृष्ण पाषाण की मूर्ति है । इसके दोनों ओर तीन-तीन और प्रवेशद्वार पर दो यानी कुल आठ देवकोष्ठ हैं । नवरंग में दाहिनी ओर सर्वाह्न यक्ष की एक सुगठित आसनस्थ मूर्ति और बायीं ओर कूष्माण्डिनी यक्षी की मूर्ति है । इस समूह के मध्य में स्थित और सबसे छोटे मंदिर के मूलनायक आदिनाथ हैं जिनके एक ओर गोमुख और दूसरी ओर चक्रेश्वरी का अंकन हना है । नवरंग में सरस्वती की एक प्रासीन मूर्ति है। पूर्व में स्थित शांतिनाथ-मंदिर में कोई शिल्पांकन नहीं है किन्तु उसके प्रवेश-द्वार चार मीटर ऊँचे हैं। उसमें 320 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001959
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size26 MB
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