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________________ अध्याय 24] दक्षिणापथ और दक्षिण भारत के राज-सार्थवाह पोयसल शेट्टी और नेमि शेट्टी की माता शांति कब्बे और मचिकब्बे ने इस मण्डप का निर्माण कराया । शासन-बस्ती में गर्भगृह के सम्मुख अर्ध-मण्डप और नवरंग की संयोजना है। उसमें आदिनाथ की एक मीटर ऊँची मूर्ति स्थापित है, उसके परिकर चमरधारी और यक्ष गोमुख और यक्षी चक्रेश्वरी अंकित हैं। इस मंदिर का निर्माण गंगराय ने १११७ ई० के आस-पास कराया और उसका नाम इंद्र-कुलगृह रखा । उसका यह नाम एक अभिलेख के कारण रखा गया जो वहाँ प्रवेश-द्वार के पास ही उत्कीर्ण है । ६.७४५.८ मीटर के एक लघ मंदिर मज्जगण्ण-बस्ती में गर्भगृह, अर्ध-मण्डप और नवरंग हैं और उसमें एक मीटर ऊंची अनंतनाथ की मूर्ति है। इस मंदिर की बाह्य भित्ति समतल है, केवल एक पुष्प-वल्लरी-युक्त बंधन-पट्टिका से उसका अलंकरण हया है। सवति-गंध-वारण-बस्ती का यह नाम शांतला देवी की एक उपाधि के कारण रखा गया । २१ १०, मीटर के इस विशाल मंदिर में गर्भगृह, अर्ध-मण्डप और नवरंग हैं और उसके गर्भगृह में शांतिनाथ की १.५ मीटर ऊँची मूर्ति और सभा-मण्डप में यक्ष और यक्षी की मूर्तियाँ स्थापित हैं। प्रवेश-द्वार के समीप और पादपीठों पर उत्कीर्ण अभिलेखों से ज्ञात होता है कि इस मंदिर का निर्माण ११२३ ई० में शांतला देवी ने कराया । दो सोपान-वीथिकाओं से संबद्ध होने के कारण एरडकत्ते-बस्ती के नाम से प्रसिद्ध मंदिर में गर्भगृह में स्थापित आदिनाथ की मूर्ति के पादपीठ पर एक अभिलेख उत्कीर्ण था जिसमें वृत्तांत है कि इस मंदिर का निर्माण १११८ ई० में सेनापति गंगराय की पत्नी लक्ष्मी ने कराया। कृष्ण वर्ण के पाषाण से निर्मित होने के कारण कत्तले-बस्ती के नाम से प्रसिद्ध यह मंदिर चंद्रगिरि पहाड़ी पर सबसे बड़ा मंदिर है; ३८ मीटर लंबे और १२ मीटर चौड़े इस मंदिर में सांधार-गर्भगृह, अर्ध-मण्डप, नवरंग, मुख-मण्डप और मुख-चतुष्की हैं। इसे पद्मावती-बस्ती भी कहते हैं । आजकल इसका शिखर नहीं है । यह आदिनाथ को समर्पित है । इसके पादपीठ पर उत्कीर्ण अभिलेख से ज्ञात होता है कि उसका निर्माण पूर्वोक्त गंगराय ने अपनी माता पोच्छिवे के कल्याण के लिए १११८ ई० में कराया था। पार्श्वनाथ-बस्ती (चित्र २०४) में भी सब विभाग हैं-गर्भगृह, अर्ध-मण्डप, नवरंग, मुख-मण्डप और मुख-चतुष्की; इसमें ४.५ मीटर ऊंची मूर्ति है और, यह चंद्रगिरि का सबसे ऊँचा मंदिर है। नवरंग में उत्कीर्ण एक अभिलेख में जैन आचार्य मल्लिषेण मलधारी की मृत्यु का उल्लेख तो है किन्तु इस मंदिर के निर्माणकाल की सूचना नहीं है । श्रवणबेलगोला के भण्डारी-बस्ती और अक्कण्ण-बस्ती नामक दो अन्य मंदिर भी उल्लेखनीय हैं । इनमें से पहला इस क्षेत्र में सबसे बड़ा है, यह ८१ मीटर लंबा और २३ मीटर चौड़ा है और इसमें लगभग एक-एक मीटर ऊंची चौबीसों तीर्थंकरों की मूर्तियाँ हैं और तीन प्रवेश-द्वार हैं जिनसे यह मंदिर-समूह कई भागों में दिखता है। मध्यवर्ती द्वार पर सुंदर शिल्पांकन है और उसके ठीक सामने की मूर्ति बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य की है। नवरंग का 319 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001959
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size26 MB
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