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अध्याय 22 ]
मध्य भारत से यह तो अवश्य ही सूचित होता है कि वे जहाँ पायी गयी हैं वहाँ प्राप्ति-काल से भी पहले से वे विद्यमान रही हैं । इस प्रकार के अधिक महत्त्वपूर्ण केंद्र इतने अधिक हैं कि उनका विस्तार से वर्णन नहीं किया जा सकता। जो भी हो, कच्छपघात क्षेत्र में शिवपुरी का उल्लेख किया जा सकता है। वहाँ से प्राप्त मूर्तियों को एक संग्रहालय में एकत्र किया गया है, उसकी चर्चा तीसरे भाग में की जायेगी। उत्तर में ललितपुर जिले में चाँदपुर है जहाँ बहुत-सी मूर्तियाँ प्राप्त हैं; जिनमें से एक, नवग्रह-शिला, का चित्र यहाँ दिया गया है (चित्र 179)। टीकमगढ़ जिले में महार में संगृहीत चक्रेश्वरी देवी की एक मूर्ति उसी क्षेत्र से प्राप्त अपने प्रकार की एक अनोखी मध्ययुगीन निधि है।
__ जिन मूर्तियों पर तिथि का निर्देश है उनमें जबलपुर जिले के बहुरी-बंद नामक स्थान की लगभग पांच मीटर ऊंची तीर्थंकर शांतिनाथ की एक कायोत्सर्ग विशाल प्रतिमा है। यह मूर्ति कलचुरि शासक गयाकर्ण के शासनकाल की है और उसपर मंदिर में उसकी प्रतिष्ठा की तिथि का उल्लेख है। इस अवसर का उपयोग कलचुरि क्षेत्र के सिवानी जिले के लखनादोन नामक स्थान से प्राप्त तीर्थंकरों की दो मूर्तियों के चित्र (चित्र 181 क और ख) प्रकाशित करने के लिए किया जा रहा है। पश्चिम में कुछ और दूरी पर परमार प्रदेश में स्थित देवास जिले के गंधावल नामक स्थान से अन्य जैन प्रतिमाओं के साथ प्राप्त चक्रेश्वरी-मूर्ति का चित्र भी यहाँ प्रकाशित किया जा रहा है (चित्र 182 क) यद्यपि वह कुछ काल पहले की हो सकती है। देखिए प्रथम भाग में पृष्ठ 177 एवं चित्र 98 ख ।
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण, केंद्रीय मण्डल, भोपाल के उपनिरीक्षक पुरातत्त्वविद् श्री बी. एल. नागार्च ने संपादक का ध्यान पूर्वी निमाड़ जिले के मांधाता नामक स्थान से प्राप्त 14 सेण्टीमीटर ऊंची और हाल ही में प्राप्त एक पीतल की मूर्ति (चित्र 182 ख) की ओर आकर्षित किया है। एक प्रासनस्थ तीर्थंकर की केंद्रीय आकृति कोटर में नहीं है; अन्यथा विद्याधरों, एक यक्ष, एक पुरुष चमरधारी और श्रद्धालु नर-नारी से युक्त यह एक संपूर्ण मूर्ति है । उसके पृष्ठभाग पर विक्रम संवत् 1241 (1184 ई०) का एक अभिलेख है-संपादक.]
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