SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 168
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 1000 से 1300 ई. [ भाग 5 प्रक्षेप पर एक संदर कमल-लता बनी हुई है जिसके पार्श्व में सेविकाएँ अंकित हैं। सेविकाओं के परे परंपरागत चार जल-देवता हैं। उनमें से प्रत्येक के पास जल-कुंभ है और वह करि-मकर पर आसीन है । स्तंभ-शाखाओं के नीचे के आलों में चतुर्भुजी श्रीदेवी की, तथा पद्मासन में बैठी हुई एवं अपने ऊपरी अवशिष्ट दाहिने हाथ में कमल-कलिका धारण किये हुए चतुर्भुजी लक्ष्मी की आकृति है जिसके आसन के नीचे कच्छप है । सातवीं शाखा के नीचे के बालों में कुबेर की मूर्तियाँ अंकित हैं जिनका एक हाथ अभय-मुद्रा में है और अन्य हाथों में वे परशु, कुंतल कमलनाल और एक भग्न वस्तु लिये हुए है। उसके आसन के नीचे तीन घट अंकित हैं जो निधियों के प्रतीक हैं। गर्भगृह के द्वार-मार्ग के पार्श्ववर्ती अर्ध-स्तंभ चौकोर हैं। वे एक ऐसे उपपीठ पर बने हुए हैं जिसका अलंकरण वर्तुलाकार गुच्छ-रचना एवं कमल-पंखुड़ियों से किया गया है। इनके ऊपर एक अलंकृत आधार (कुंभिका) है जिसमें खुर, उद्गम से सज्जित कुंभ, कलश और कपोत-युक्त सज्जापट्टियाँ हैं। स्तंभावली के निचले भाग में चतुर्भुजी द्वारपाल की मूर्ति है। उसके बीच के भाग का अलंकरण निम्नलिखित से किया गया है : (१) कीर्तिमुख के मुख से निकलनेवाली लहरदार पत्रलताएं, (२) हीरक-प्राकृतियाँ, (३) घट-पल्लव । इससे ऊपर एक प्रक्षिप्त पट्टिका है जिसके ऊपर एक 'उच्चालक खण्ड है जिसमें घट-पल्लव अंकित है। ऊपर के स्तंभ-शीर्ष पर आमलक और पद्म द्वारा अलंकृति की गयी है । स्तंभ-शीर्ष पर भूत-टोडे टिके हुए हैं जिनपर कोनों में भक्ति-विभोर नाग बने हैं । टोडे सरदलों को सहारा देते हैं जिनके तीन खसकों का अलंकरण निम्नलिखित से किया गया है : (१) सोलह मंगल-प्रतीक जिन्हें गर्भ-धारण के समय महावीर की माता ने स्वप्न में देखा था, (२) वर्तुलाकार गुच्छ-रचना जो पारी-क्रम से हीरक-प्राकृतियों के साथ बनायी गयी है, और (३) ग्रास-पट्टिका। सरदलों के ऊपर की अधिरचना इस समय उपलब्ध नहीं है और उसका जीर्णोद्धार हाल ही में चुना-पलस्तर द्वारा किया गया है। गर्भगृह जिन अर्ध-स्तंभों पर टिका हुआ है उसमें आयताकार सादी स्तंभावली है। जो भी हो, स्तंभावलियों के ऊपरी और निचले भागों में बीच के अर्ध-स्तंभों पर घट-पल्लव अंकित हैं। ये स्तंभावलियाँ सामान्य रूपरेखा के उपपीठ और कुंभिका पर टिकी हुई हैं। इन सभी अर्द्ध-स्तंभों पर स्तंभ-शीर्ष हैं जिनके ऊपर एक पट्टिका है जिसपर बेल-बूटे अंकित हैं। बीच के अर्ध-स्तंभों पर भूतटोडे हैं। पिछले अर्ध-स्तंभ सादी वक्र-रेखा-युक्त हैं, जिनके ऊपरी भाग पर वलय है। सरदल सादा है, उसके दो खसके हैं और वह एक कपोत को सहारा देता है जिसपर एक समतल छत है, जिसका अलंकरण एक बड़े कमल-पुष्प द्वारा किया गया है। इस पुष्प की एक चौकोर खण्ड में आवृत उकेरी गयी संकेंद्री पंखुड़ियों की चार पत्तियाँ हैं । इस खण्ड के कोने कीर्तिमुखों से अलंकृत हैं। गर्भगृह की पूर्वी भीतरी छत समतल और सादी है। इस मंदिर में आदिनाथ की प्राचीन प्रतिमा के स्थान पर आदिनाथ की एक नयी मूर्ति प्रतिष्ठित है। प्राचीन प्रतिमा की केवल चौकी ही शेष रह पायी है। यह मंदिर आदिनाथ का ही था 294 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001959
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages372
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size26 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy