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अध्याय 22 ]
मध्य भारत
है। आकृतियाँ अब विकृत हो गयी हैं। दूसरी ओर चौथी शाखाओं में गणों को नृत्य करते हुए या संगीत-वाद्य बजाते हुए चित्रित किया गया है। तीसरी शाखा पर, जिसका उपयोग स्तंभ-शाखा के रूप में किया गया है, आठ यक्षियाँ उत्कीर्ण की गयी हैं। ठीक दायें द्वार-पथ में नीचे से ऊपर की ओर निम्नलिखित का अंकन किया गया है : (१) चतुर्भजी देवी जिसका एक हाथ अभय अभय-मुद्रा में है
और अन्य हाथों में कुण्डलित कमलनाल, जलकुंभ है, वाहन नहीं है । (२)चतुर्भुजी देवी जो एक वस्तु (अब लुप्त) सुवा, पुस्तक और फल लिये हुए है। नीचे हिरण-जैसे वाहन का अंकन है। (३) चतुर्भुजी देवी जिसका हाथ अभय-मुद्रा में है और जो पाश, कुण्डलित कमलनाल और एक पदार्थ (अब लुप्त) लिये हुए है तथा पक्षी-वाहन पर आरूढ़ है। (४) चतुर्भुजी देवी जिसका हाथ अभय-मुद्रा में है और जो स्र वा, पुस्तक और जलकुंभ लिये हुए है। उसका वृषभ-वाहन नीचे अंकित है। ठीक बायें द्वार-पथ में नीचे से ऊपर की ओर निम्नलिखित का अकंन किया गया है: (१) चतुर्भुजी देवी जिसके दो अवशिष्ट हाथों में कुण्डलित कमलनाल और शंख हैं, नीचे मकर-वाहन अंकित है। (२) चतुर्भुजी देवी जिसके सभी चिह्न टूट गये हैं किन्तु शुक-वाहन पूरा का पूरा सुरक्षित है। (३) चतुर्भुजी देवी जो तीन अवशिष्ट हाथों में कुंतल कमलनाल, पुस्तक और एक फल लिये हुए है, उसके पशु-वाहन का सिर अब नहीं है । और अंत में,(४)चतुर्भजी देवी है जिसका हाथ अभय-मद्रा में है और जो कुंतल कमलनाल, पुस्तक और जलकुंभ लिये हुए है; नीचे वृषभ-वाहन का अंकन है । पाँचवीं शाखा का अलंकरण पारी-पारी से श्रीवत्स के अंकन और पुष्छगुच्छ-रचना द्वारा हुआ है। छठी शाखा का, जो द्वार-मार्ग का प्रवणित वेष्टन है, अलंकरण नीचे अंकित एक व्याल के मुख से निकली एवं स्थूल रूप से उकेरी गयी पत्र-लताओं द्वारा किया गया है। अंतिम या सातवीं शाखा का अलंकरण एक विशेष प्रकार की वर्तुलाकर गुच्छ-रचना द्वारा किया गया है। प्रथम शाखा और पार्श्व की मंदारमाला सरदल तक ले जायी गयी है। द्वार-मार्ग का सरदल स्तंभ-शाखाओं पर टिका हुआ है जिनके आलों में पाँच देवियों की प्रतिमाएँ अंकित हैं। बीच के और अंतिम पालों में आसीन देवियाँ चित्रित है; इनमें से प्रत्येक चतुर्भुज भूत पर अवलंबित है। बीच के आले के पाश्वर्यों में स्थित अालों में देवियों की खड़ी हुई मूर्तियाँ हैं। बीच के आले में चतुर्भुजी चक्रेश्वरी अंकित है जिसका हाथ अभय-मुद्रा में है और वह गदा, पुस्तक और शंख लिये हुए है । वह गरुड़ पर आसीन है और किरीट-मुकुट पहने हुए है। ठीक दाहिने छोर के पाले में अंबिका यक्षी की मूर्ति है जो आम्र-गुच्छ, कुंतल कमलनाल, कुंतल कमल-नाल सहित पुस्तक और एक बालक को लिये हुए है; वह सिंह पर आरूढ़ है। ठीक बायें सिरे के पाले में पद्मावती यक्षी है जो सर्प-फणावली के नीचे एक कच्छप पर आसीन है। उसका हाथ अभय-मुद्रा में है और वह पाश, कमल-कलिका और जल-कुंभ लिये हुए है। सरदल के पाँचों पालों के ऊपर उद्गम है । द्वार-मार्ग के आधार पर गंगा और यमुना अंकित हैं जिनके प्रत्येक अोर स्त्री-सेविकाएँ हैं। द्वार-पक्ष पर अंकित सेवक एक दूसरे के सामने अंकित है तथा उनके पास जल-कुंभ है। दाहिनी आकृति के पीछे मकर चित्रित है तो बायीं आकृति के पीछे कच्छप । नदी-देवियों और उनकी सेविकाओं की प्राकृतियाँ बुरी तरह विकृत हो गयी हैं। यही हाल उन चार द्वारपालों का हुआ है जो दोनों ओर दो-दो बने हुए हैं। ये द्वारपाल क्रमशः द्वार-मार्ग के वेष्टन तथा द्वार-मार्ग के पार्श्व के अर्ध-स्तंभों के नीचे बने हुए हैं। देहरी के ऋजुरेखीय केंद्रीय
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