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वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 300 ई० पू० से 300 ई०
[ भाग 2 सोमदेव के मतानुसार इसका निर्माण वज्र कुमार ने करवाया था, जो दिव्य विद्याधरों की अलौकिक शक्तियों से संपन्न था।'
__ जैसा कि पहले कहा जा चुका है, फ्यूरर को खुदाई में ईंटों का एक स्तूप प्राप्त हुआ था जिसका व्यास १४.३३ मीटर बताया जाता है । इस स्तूप की रूपरेखा के एक सामान्य रेखाचित्र से (रेखाचित्र २) प्रतीत होता है कि यह स्तूप पूर्णरूपेण ईंटों का बना हुआ नहीं था। इसके अभ्यन्तर में ईंटों की चिनाई एक आठ अरोंवाले चक्र के रूप में थी । चक्र के अतिरिक्त उसमें एक वृत्ताकार भित्ति थी, जो ढाँचे को शक्ति प्रदान करने के लिए विकीर्ण अरों को मध्य में जोड़ती थी। इस ढाँचे के भीतर शेष स्थान अनुमानत: चिकनी मिट्टी से भरे हुए थे।
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रेखाचित्र 2. कंकाली टीला : ईट-निर्मित स्तूप की रूपरेखा (स्मिथ के अनुसार)
1 हन्दीक़ी ( के के ). यशस्तिलक एण्ड इण्डियन कल्चर . 1949. शोलापुर. पृ 416 और 433. 2 स्मिथ, पूर्वोक्त, चित्र 3. तथापि, रेखाचित्र में व्यास 14.33 मीटर से कहीं अधिक दिखाया गया है .
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