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________________ बास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 600 से 1000 ई० [ भाग 4 सतना जिले में पिथौरा का पतियानी देवी का जैन मंदिर (चित्र ६५ क), जिसका रचनाकाल सन् ६०० के लगभग निर्धारित किया जाता है, इतने परवर्ती काल तक में समतल शिखरयुक्त मंदिरों की परंपरा के अविछिन्न प्रचलन का प्रमाण प्रस्तुत करता है। इस मंदिर के त्रि-शाखद्वार की स्तंभ-शाखाएँ उत्कीर्ण पद्म-पत्रावलियों से अलंकृत हैं। इन स्तंभ-शाखाओं पर आधृत उत्तरांग तीन रथिकानों में स्थापित तीर्थंकरों की पद्मासन प्रतिमाओं (चित्र ६५ ख) द्वारा अलंकृत हैं। स्तंभ-शाखा के निचले भाग पर गंगा तथा यमुना अतिभंग-मुद्रा में अंकित हैं, जिनके पार्श्व में यक्षद्वारपाल हैं जो अपने हाथों में गदा और सर्प के अपने विशेष लाक्षणिक उपकरणों को धारण किये हुए हैं।1 (चित्र ६६)। सतना जिले से भी तीर्थंकर पार्श्वनाथ की एक पद्मासन प्रतिमा उपलब्ध हुई है जो इस समय रामबन स्थित तुलसी-आश्रम-संग्रहालय में सुरक्षित है। पार्श्वनाथ की इस प्रतिमा के पार्श्व में चमरधारी इंद्र और उपेंद्र को आकर्षक त्रि-भंग-मुद्रा में खड़े हुए दर्शाया गया है । तीर्थकर-मूर्ति का सुगठित रूपांकन-मुखमण्डप पर ध्यानस्थ शांत भाव तथा आध्यात्मिक दीप्ति का विकिरण, और देव-अनुचरों की कोमल-कमनीय मुद्रा का अंकन यह बताता है कि यह प्रतिमा गुप्त-कालीन कलापरंपरा के प्रेरणा-श्रोत के निकट है, और इसका रचनाकाल लगभग सातवीं शताब्दी प्रतीत होता है। सीरा पहाड़ी से प्राप्त जैन प्रतिमाओं का उल्लेख अध्याय १२ में किया जा चुका है। सीरा पहाड़ी के ही निकट स्थित नचना से भी लगभग आठवीं शताब्दी की तीन तीर्थंकर-प्रतिमाएँ उपलब्ध हई हैं जिनमें दो आदिनाथ की पद्मासन प्रतिमाएँ और एक पार्श्वनाथ की कायोत्सर्ग प्रतिमा है । नचना गुप्त और प्रारंभिक प्रतीहारकालीन ब्राह्मण्य मंदिरों के लिए विख्यात है। जबलपुर के निकटवर्ती क्षेत्र तथा तेवर (प्राचीन त्रिपुरी) से भी, लगभग नौवीं से ग्यारहवीं शताब्दियों तक की अनेक जैन प्रतिमाएँ उपलब्ध हुई हैं। इनमें से अति-अलंकृत परिकरयुक्त तीर्थंकर धर्मनाथ की पद्मासन प्रतिमा (चित्र ६७ क) लगभग दसवीं शताब्दी की कलचुरि मूर्तिकला की एक उल्लेखनीय कृति है। यह प्रतिमा इस समय नागपुर के केंद्रीय संग्रहालय में है। इसी प्रकार के गठन और कलात्मक अंकन के लिए विख्यात एक दूसरी उल्लेखनीय प्रतिमा पद्मासनस्थ तीर्थंकर आदिनाथ की है जो त्रिपुरी से उपलब्ध हुई है और इस समय कलकत्ता के राष्ट्रीय संग्रहालय में 1 [पतियानी देवी मंदिर की विशद रूप से उत्कीर्ण अंबिका की एक प्रतिमा इलाहाबाद संग्रहालय में है (प्रमोद चन्द्र. स्टोन स्कल्पचर इन दि इलाहाबाद म्यूजियम. 1971 (?). पूना. पृ 162). इस चतुर्भुजी देवी की चारों भुजाएं खण्डित हो चुकी हैं। देवी करण्ड-मुकुट धारण किये हुए है। इसका प्रभामण्डल चक्राकार कमल से सुशोभित है। देवी के पार्श्व में दो युवक हैं, पैरों के पास भक्त नर-नारी हैं, जिनके पार्श्व में दो चतुर्भुजी देवियाँ हैं । बायीं और की देवी को प्रजापति (प्रज्ञापति?) और दायीं ओर वाली को वज्रशंखला (वज्रदंखला ?) लिखा गया है। पार्श्व की क्षुद्र-रथिकानों पर उत्कीर्ण अनुचर देवियाँ नामांकित हैं। इस प्रतिमा का काल ग्यारहवीं शताब्दी निर्धारित किया गया है - संपादक] 176 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001958
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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