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वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 600 से 1000 ई०
[ भाग 4
जैन यक्षी पद्मावती कह दिया गया है (जिसका ब्राह्मण प्रतिरूप मनसा है)। यह नौवीं-दसवीं शताब्दियों की हो सकती है।
इसी काल की बिहार से प्राप्त अन्य उल्लेखनीय मूर्तियों में चन्द्रप्रभ की एक प्रस्तर-मूर्ति (चित्र १२ क) है जो अब भारतीय संग्रहालय में संगृहीत है ।
इस अवधि में जैन धर्म और कला का एक महत्त्वपूर्ण केन्द्र सिंहभूम जिले में भी था, जैसा कि वेणीसागर में विद्यमान पुरावशेषों से निश्चित होता है; जिन्हें बेग्लर ने सातवीं शती का माना है, तथापि, वेणीसागर के पुरावशेषों का सर्वेक्षण नये सिरे से किया जाना चाहिए।
मध्यकाल में अासाम में जैन धर्म कम ही प्रचलित रहा प्रतीत होता है। तथापि ग्वालपाड़ा जिले में सूरज पहाड़ पर स्थित गुफाओं के भीतर उत्कीर्ण जैन मूर्तियाँ (चित्र ६२ ख) इस संदर्भ में महत्त्वपूर्ण हैं।
प्रियतोष बनर्जी
2 शाह, पूर्वोक्त, पृ 17. जैन देवियों में पद्मावती एक अत्यन्त महत्वपूर्ण देवी है। शासन देवी से एक स्वतंत्र देबी
के रूप में उसके व्यक्तित्व का विकास उल्लेखनीय है। 3 पार्क यॉलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया रिपोर्ट स. 13. संपा : जे डी बेग्लर. 1882. कलकत्ता.पृ 69-71. [जब इस
ग्रंथ का संपादक 1937 में वेणीसागर गया तब उसे वहाँ थोड़ी-सी ब्राह्मण्य मूर्तियाँ ही मिलीं.- संपादक]
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