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________________ अध्याय 15 ] पूर्व भारत सं०८ में है जिसका उल्लेख पहले (१ १६६)किया जा चुका है । यह समझना कठिन है कि बहुरूपिणी को लेटी हई स्थिति में क्यों दिखाया गया है (जो हमें माया की उस समय की स्थिति का स्मरण दिलाती है जब उसने स्वप्न में बोधिसत्व को एक श्वेत गज के रूप में अपने गर्भ में प्रवेश करते देखा था) जबकि अन्य शासनदेवियाँ पासीन-मुद्रा में दिखाई गयी हैं। कलकत्ता के नाहर-संग्रह में ही बिहार से प्राप्त कुछ मूर्तियाँ और भी हैं। इनमें से एक के ऊपरी भाग में पद्मासन ध्यान-मुद्रा में तीर्थकर-मूर्ति है और निचले भाग में एक वृक्ष की शाखाओं के नीचे एक युगल आसीन है । नारी-मूर्ति की गोद में एक बालक बैठा दिखाया गया है। एक अन्य है-तीर्थंकर मति का ऊपरी खण्ड, जिसे लगभग नौवीं शती का माना जा सकता है। इस संग्रह की एक प्रार्स अंबिका भी बिहार से प्राप्त हुई प्रतीत होती है और शैली की दृष्टि से नौवीं / दसवीं शताब्दी की प्रतीत होती है (चित्र ६१ क)। लगभग इसी युग की अंबिका की एक सुदर कांस्य मूर्ति राष्ट्रीय संग्रहालय में कुछ समय पूर्व उपलब्ध की गयी है। इसका कला-कौशल नालंदा का है (चित्र६१ ख)। मार्च १९७४ में धनबाद जिले के अलुपारा में उन्तीस कांस्य मूर्तियां खोजी गयीं जिनमें से सत्ताईस तीर्थंकरों की हैं, वे अब पटना संग्रहालय में संगृहीत हैं । इस समूह की अधिकांश तीर्थंकर-मूर्तियों के ललाट पर ऊर्णा का अंकन है । तीर्थंकरों की खड्गासन मूर्तियों में हथेलियाँ और अँगुलियाँ शरीर का स्पर्श करती हैं । इन मूर्तियों के पादपीठों पर विभिन्न प्रकार की पट्टिकानों के मिले-जुले अलंकरण हैं। सभी पर लांछन अंकित हैं जिनके कारण ऋषभदेव, चन्द्रप्रभ, अजितनाथ, शान्तिनाथ, कुन्थनाथ, पाश्वनाथ, नेमिनाथ, महावीर और अंबिका की पहचान की जा सकती है। उनमें से कुछ को शैली के आधार पर प्रारंभिक ग्यारहवीं शती की माना जा सकता है। इस संदर्भ में मानभूम से प्राप्त आदिनाथ की एक कांस्य मूर्ति उल्लेखनीय है, जो अब कलकत्ता के प्राशुतोष म्यूजियम ऑफ इण्डियन आर्ट में सुरक्षित है। इसके साथ ही, यहाँ नालंदा के पुरातत्त्व संग्रहालय में संगृहीत फणावलियुक्त नारी की पाषाण-मूर्ति उल्लेखनीय है, जिसे संदेहवश विजयसिंह नाहर का जिन्होंने अत्यन्त कृपापूर्वक मुझे अपने संग्रह की जैन मूर्तियों का अध्ययन करने और उनके चित्र लेने की अनुमति प्रदान की। [मित्रा, वही, 1959. श्रीमती मित्रा ने समुचित कारण देकर यह सिद्ध किया है कि इस लेटी हुई नारी का तीर्थंकर की माता के रूप में समीकरण तर्कसंगत नहीं है - संपादक] 2 [पुराना मानभूम जिला अब दो जिलों में विभक्त कर दिया गया है, धनबाद (बिहार में) और पुरुलिया (पश्चिम बंगाल में)। यह ज्ञात करना संभव न हो सका कि यह कांस्य मूर्ति इन दो में से किस जिले से प्राप्त हुई. - संपादक 173 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001958
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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