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वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 600 से 1000 ई०
[ भाग 4
मलनायक की-सी मुद्रा में लघुतर मंदिरों में अंकित हैं। इनमें से सात-सात की एक-एक पंक्ति मुलनायक प्रतिमा के दोनों ओर है और ऊपर नौ मूर्तियाँ तीन-तीन मूर्तियों की तीन समानांतर पंक्तियों में अंकित हैं। इन तीन पंक्तियों को थोड़ा आगे की अोर प्रक्षिप्त रूप में अंकित किया गया है ताकि वे मूलनायक प्रतिमा के लिए एक प्रकार से छत्र का-सा रूप दे सकें । इसके दोनों ओर चमरधारी अनुचर सौम्य मुद्रा में खड़े हैं और उनके जटामुकुट के समानांतर मालाधारी विद्याधर युगल मेघों के परंपरागत मूर्तन के मध्य उड़ते हुए दिखाये गये हैं। कदाचित् प्रारंभिक पालयुग की इस प्रतिमा की संपूर्ण निर्मिति सूक्ष्म कौशल और सुरुचिपूर्ण सरसता से की गयी है।
और भी बहुत-सी उत्कृष्ट जैन मूर्तियां बांग्लादेश के उत्तरी भाग में बनीं। इनमें वे मूर्तियाँ भी सम्मिलित हैं जिनमें कल्पवृक्ष के नीचे बैठे हुए दम्पति को दर्शाया गया है, जिनकी गोद में बालक है और उनके ऊपर कल्पवृक्ष की शाखाएँ फैली हुई हैं। यह जैन परंपरा के अंतर्गत एक शासन-यक्ष युगल है, और प्रजनन-स्वरूप का प्रतीक है, उसी प्रकार जैसे बौद्ध धर्म की महायान शाखा के कुबेर और हारीति । ऋषभनाथ की एक मूर्ति (दसवीं शती) भी इसी क्षेत्र की है जो अब कलकत्ता विश्वविद्यालय के आशुतोष संग्रहालय में है । उसे एस० के० सरस्वती ने राजशाही जिले के मण्डोल से प्राप्त किया था ।
नेमिनाथ की यक्षी अंबिका' की एक उत्कृष्ट कांस्य मूर्ति, २४ परगना जिले के नलगोड़ा से
हई थी। धनुषाकार फैले वक्ष के नीचे अपनी देह में आकर्षक प्राकंचन दिये और कटि पर बालक को हाथ से थामे हुए देवी एक कमलपुष्प पर खड़ी है। बायें हाथ में कोई पुष्प है। उसकी दायीं ओर एक नग्न बालक खड़ा है। वृक्ष के नीचे अंबिका का चिह्न सिंह अंकित है। शैली के आधार पर यह मूर्ति (चित्र ८१ ख) भी दसवीं शती की मानी जा सकती है। तेईस अन्य तीर्थंकरों के साथ कायोत्सर्ग-मद्रा में अंकित तीर्थंकर पार्श्वनाथ की ग्यारहवीं शती की कान्ताबेनिया से प्राप्त मूर्ति से प्रमाणित होता है कि मध्यकाल में इस क्षेत्र में जैन धर्म बहुत लोकप्रिय था।
जैन मर्तियाँ पश्चिम बंगाल के और भी कई जिलों में विपुल संख्या में उपलब्ध हैं। बर्दवान के उजनी में ग्यारहवीं शती की शान्तिनाथ की एक दुर्लभ मूर्ति खोज निकाली गयी थी, जो अब
1 मजूमदार (रमेशचन्द्र), संपा. हिस्ट्री ऑफ बंगाल. खण्ड 1. 1942. ढाका. पृ 464 पर जितेन्द्रनाथ बनर्जी के
विचार. [दीनाजपुर जिला अब दो भागों में विभक्त कर दिया गया है, पश्चिम दीनाजपुर (पश्चिम बंगाल, भारत) और पूर्वी दीनाजपुर (बांग्लादेश). यह निश्चित नहीं किया जा सका कि यह मूर्ति इन दो जिलों में से किस जिले
की है-संपादक] 2 बही, पृ 465. 3 वही. 4 वही.
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