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वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 600 से 1000 ई०
[ भाग 4
मूतियाँ विचाराधीन अवधि की मूर्तियों की संख्या तो बहुत है, किन्तु हमारे पास कुछ के ही विवरण उपलब्ध हैं। उनमें से जो अधिक महत्त्वपूर्ण हैं, उनका उल्लेख यहाँ पर किया जा सकता है, विशेष रूप से उनका, जो सुलभ्य संग्रहों में सुरक्षित हो चुके हैं।
प्रारंभिक मध्यकाल में मथुरा जैन कला और स्थापत्य का केन्द्र बना रहा। यह तथ्य यहाँ उत्तर-गुप्त-शैली की अनेक जैन प्रतिमाओं की उपलब्धि से प्रमाणित होता है । छठी से बारहवीं शताब्दी तक मथुरा तथा निकटवर्ती भरतपुर, कामन और बयाना क्षेत्रों में शूरसेन नामक सामंतवादी राजवंश का शासन था। शूरसेन-राजवंश कला और स्थापत्य के महान् संरक्षक थे। शूरसेनों के उदारतापूर्ण शासन के अंतर्गत ब्राह्मण और जैन धर्म दोनों ही समृद्ध हुए। प्राचीनकाल से ये क्षेत्र शूरसेन नाम से प्रसिद्ध थे । प्रत्यक्षतः उक्त राजवंश का नामकरण भी क्षेत्र के नाम पर ही किया गया था। कामन की चौंसठ-खंभा नाम से प्रसिद्ध प्राचीन मसजिद में प्रारंभिक मध्यकाल की अनेक ब्राह्मण और कुछ जैनधर्मी मूर्तियाँ देखी जा सकती हैं। कामन जैन धर्म के काम्यकगच्छ का केन्द्र था । इस गच्छ के विष्णुसूरि तथा महेश्वरसूरि नामक जैन गुरुयों का उल्लेख १०४३ ई० के बयाना के शिलालेख में किया गया है। लक्ष्मीनिवास के शासनकाल, १०३२ ई० में, जिसका परिचयन शूरसेन राज्याध्यक्ष लक्ष्मण से किया जा सकता है, जैन विद्वान् दुर्गादेव ने कुम्भनगर अथवा कामन नामक स्थान पर शान्तिनाथ के मंदिर में ऋष्ट-समुच्चय नामक ग्रंथ की रचना की थी। कर्दम नामक एक अन्य शरसेनवंशीय शासक का नाम उल्लेखनीय है, जिसे अभयदेवसरि ने जैन धर्म में दीक्षित किया था और उसका नामकरण घनेश्वर-सूरि किया था। बताया जाता है कि उसने राज-गच्छ की स्थापना की थी। कामन के समान ही, प्राचीनकाल से शान्तिपुर अथवा श्रीपथ नाम से विख्यात, बयाना भी जैन धर्म का एक शक्तिशाली गढ़ था। इस स्थान से ६६४ ई. की एक अभिलेखांकित जैन प्रतिमा प्राप्त हुई है, जिसमें उल्लेख है कि वागड़-संघ के शूरसेन की प्रेरणा से यह प्रतिमा प्रस्थापित की गयी थी। बयाना में उखा-मसजिद के नाम से प्रसिद्ध चौदहवीं शती की एक मसजिद तथा पाँच अन्य मसजिदों का निर्माण, पूर्व मध्यकाल तथा परवर्ती अवधि के अनेक हिन्दू तथा जैन मंदिरों को विध्वंस करके प्राप्त की गयी सामग्री द्वारा किया गया था, जैसा कि पुनः उपयोग में लाये गये प्राचीन उत्कीर्ण स्तंभों तथा अन्य स्थापत्य-घटकों से प्रमाणित होता है। पिलानी का निकटवर्ती नरहद (प्राचीन नरभट) भी श्रसेन राज्य के कला-प्रदेश के अंतर्गत था; यह तथ्य इस स्थान पर पायी गयी उच्च कलात्मकता से युक्त नौवीं शताब्दी की चार कायोत्सर्ग तीर्थंकर-प्रतिमाओं से प्रमाणित होता है। इनमें से दो प्रतिमाएँ नेमिनाथ की हैं और एक-एक सुमतिनाथ तथा शान्तिनाथ की।
1 इण्डियन ऐण्टीक्वेरी. 143; 1885%3 8 तथा परवर्ती. 2 जैन (के सी). ऐंश्येण्ट सिटीज़ एण्ड टाउन्स प्रॉफ राजस्थान. 1972. दिल्ली. 150. 3 वही, पृ 153. 4 शर्मा (दशरथ). मी चौहान डाइनेस्टीज. 1959. दिल्ली. पृ 228 के सामने का चित्र. / इण्डियन प्रायॉ-.
लॉजोः ए रिव्यू, 1956-57. 1957. नई दिल्ली. पृ. 83.
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