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________________ अध्याय 14 उत्तर भारत मंदिर उत्तर भारत में प्रारंभिक मध्यकाल की बहुत अधिक वास्तुकलाकृतियाँ शेष नहीं बची हैं । अवशिष्ट कलाकृतियों में मुख्य हैं, पाली जिले में घानेराव का मंदिर और जोधपुर जिले में प्रोसिया नामक स्थान पर मंदिरों का समूह, जिसमें इस काल के मंदिरों के अतिरिक्त, परवर्तीकाल के मंदिर भी सम्मिलित हैं । महावीर मंदिर, घानेराव धानेराव स्थित, महावीर मंदिर ( चित्र ६९ ) सांघार प्रासाद के रूप में है, जिसमें प्रदक्षिणा - पथ युक्त एक गर्भगृह, एक गूढ़ - मण्डप, एक त्रिक-मण्डप तथा मुख- चतुष्की (द्वार - मण्डप) सम्मिलित हैं । इस मंदिर के चारों ओर चौबीस देवकुलिकाओं से युक्त एक रंग- मण्डप भी बना हुआ है और यह सम्पूर्ण निर्मिति एक ऊँचे प्राकार के भीतर स्थित है । मंदिर के गर्भगृह की रचना - शैली सरल है । उसमें केवल दो अवयव हैं; अर्थात् भद्र और कर्ण, प्रदक्षिणापथ के तीन ओर बनाये गये भद्र- प्रक्षेपों (छज्जों) को, गूढ़ - मण्डप की भित्तियों की भाँति सुंदर झरोखों द्वारा सजाया गया है, जिनसे प्रकाश प्रस्फुटित होता है । मंदिर की रचना ( उठान; चित्र ७०) जाड्य-कुंभ के पीठ-बंधों, कलश तथा सादी पट्टिकाओं को आधार प्रदान करनेवाली युगल-भित्तियों द्वारा हुई है। पीठ के ऊपर सामान्य रूप से पाये जानेवाले वेदी-बंध स्थित हैं, जो सादा होते हुए भी आकर्षक हैं। प्रत्येक झरोखेयुक्त भद्र के मध्य में भित्ति से थोड़ा बाहर की ओर निकलती हुई देव-कुलिकाएँ ( आले) निर्मित की गयी हैं, जिनमें पद्मावती, चक्रेश्वरी, ब्रह्म यक्ष, निर्वाणी तथा गोमुख यक्ष की ऐसी प्रतिमाएँ उत्कीर्ण की गयी हैं, जो पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर अपनी प्रदक्षिणा के क्रम में एक दूसरे से मिलते हुए दिखाये गये हैं । जंघाओं के कोनों पर दो भुजाओं वाले जो मनोहर त्रिभंग- मुद्रा में खड़ी हैं और जिन्हें Jain Education International दिग्पालों की सुडौल आकृतियाँ उत्कीर्ण की गयी हैं, कीचकों ने उठाया हुआ है । ये प्राकृतियाँ भव्यता से 149 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001958
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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