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________________ वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 300 से 600 ई० [भाग 13 में जैन संपन्न होते गये, जैसा कि वलभि में पायी गयी जैन कांस्य प्रतिमाओं से भी स्पष्ट प्रतीत होता है। यह भी उल्लेखनीय है कि भण्डारकर ने उसी स्थान से कुमारगुप्त-प्रथम के कई सिक्के भी खोज निकाले। चित्र ६७ क में इन पाँच कांस्य मूर्तियों में दायीं ओर से दूसरी तथा बायीं ओर की पहली कुछ स्थूल प्रतीत होती हैं। गुजरात की प्राचीन कांस्य मूर्तियों का कोई विवरण उपलब्ध न होने से, केवल शैली के आधार पर इनके समय का निर्णय कर पाना कठिन है। सांकलिया का मत है कि गुजरात में ढांक के कुछ शैलोत्कीर्ण शिल्पांकन चौथी शती ई० के प्रारंभ के हैं। पुनश्च, पश्चिम भारत में तीसरी और चौथी शताब्दियों के मूर्तिकला संबंधी पर्याप्त विवरण के अभाव में इन शिल्पांकनों का काल-निर्धारण करना सरल नहीं है। किन्तु तीर्थंकर और उनकी सेविका यक्षी अंबिका की प्रतिमाओं को चौथी शती के स्थान पर छठी या सातवीं शती के अंत की मानना चाहिए। अबतक ज्ञात कोई साहित्यिक या पुरातात्त्विक साक्ष्य ऐसा नहीं है, जो छठी शती ई० के पूर्व जैन-पूजा-विधि में इस यक्षी का सम्मिलित किया जाना प्रमाणित करता हो। शैली के अनुसार ये प्रतिमाएं सातवीं शती की मानी जा सकती हैं। अकोटा समूह में उपलब्ध कुछ और कांस्य मूर्तियों को उनकी शैली तथा कहीं-कहीं उनके अभिलेखों की पूरालिपि के साक्ष्य के आधार पर इस युग के अंतिम भाग की माना जा सकता है। जैन कला तथा प्रतिमा-विज्ञान के इतिहास में जीवंतस्वामी की दो कांस्य मूर्तियाँ (एक अभिलेखांकित पादपीठ सहित तथा दूसरी पादपीठ रहित) अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। जैसा कि नाम से ही विदित है, 'जीवंतस्वामी प्रतिमा' मूल रूप में एक व्यक्ति-प्रतिमा थी, जबकि स्वामी अर्थात् महावीर जीवित (जीवंत) थे । पुरातन जैन परंपरा के अनुसार, चंदन की एक ऐसी प्रतिमा (गोशीर्ष-चंदन) महावीर की उस समय की व्यक्ति-प्रतिमा थी, जब वे दीक्षा से पूर्व अपने महल में ध्यानावस्थित थे। अतएव महावीर को इसमें राजकुमार के उपयुक्त मुकुट तथा अन्य आभूषणों और अधोवस्त्र सहित प्रदर्शित किया गया है। बोधिसत्व की भाँति ही, जिन्हें बुद्धत्व प्राप्त होना था, जीवंतस्वामी की कल्पना को 'जिनसत्व' के रूप में की गई मानी जा सकती है। 1 जर्नल प्रॉफ द रायल एशियाटिक सोसाइटी. 1938 ; 427 तथा परवर्ती, चित्र 3-4./ सांकलिया (एच डी). मार्क यॉलॉजी ऑफ गुजरात. 1941. बंबई. पृ 160. / शाह, पूर्वोक्त, 1955, रेखाचित्र 31, पृ 16-17. 2 जीवंतस्वामी की प्रतिमा के निर्माण और विचारधारा के लिए द्रष्टव्य : शाह (यू पी). ए युनीक जैन इमेज प्राफ जीवंतस्वामी. जर्नल ऑफ दि प्रोरियंटल इंस्टिट्यूट, बड़ौदा. 1, 1; 72-79 और 'साइड लाइट्स प्रॉन द लाइफटाइम सेंडलवुड इमेज ऑफ महावीर'. वही. 1, 4; 358-68./ और द्रष्टव्य : सम मोर इमेजेज आफ जीवंतस्वामी. जर्नल ऑफ इण्डियन म्युजियम्स. 1; 49-50. 142 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001958
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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