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पश्चिम भारत
अध्याय 13 ]
यौवनपूर्ण तथा प्रफुल्लित मुखाकृतियुक्त प्रदर्शित किया गया है। शीर्ष पर सुनियोजित घुँघराली लटों के अतिरिक्त उष्णीष भी दिखाया गया है ।
हरिषेण कृत बृहत् - कथा में उल्लिखित दिगंबर परंपरा के अनुसार भी कुछ जैन मुनियों के द्वारा वस्त्रों के उपयोग का प्रारंभ पश्चिम भारत में कांबलिका तीर्थ नामक स्थान से हुआ प्रतीत होता है | अतः यह कोई आश्चर्य नहीं कि तीर्थंकर की प्रारंभिक प्रतिमा श्वेतांबर रूप में (अर्थात् अधोवस्त्र, धोती सहित) पश्चिम भारत के कोटा नामक स्थान से उपलब्ध है ।
तीसरी और चौथी शताब्दियों का कोई जैन अवशेष अभी तक उपलब्ध नहीं है । पाँचवीं शती की ऋषभनाथ की केवल कांस्य मूर्ति उपलब्ध हुई है, जिसका उल्लेख पहले हो चुका है । छठी शती की कुछ और जैन मूर्तियाँ उपलब्ध हैं ।
वलभि से तीर्थंकरों की पाँच खड्गासन कांस्य मूर्तियों को डी० प्रार० भण्डारकर ने खोज निकाला (चित्र ६७ क ) है, जो प्रिंस ऑफ वेल्स म्यूजियम, बंबई में सुरक्षित रखी हैं । 3' इनके खण्डित अभिलेखों में से कम-से-कम दो के प्रांशिक रूप में उपलब्ध अभिलेख के आधार पर भण्डारकर ने इन्हें छठी शती का माना है । मोरेश्वर दीक्षित ने इनमें से एक पर वलभि-युग ( ५३८ से ५४८ ई०) का संव २०० (+) २० (+) पढ़ा है । 4 मूर्तियों के धड़ बौने हैं, किन्तु उनके सिर अपेक्षाकृत बड़े और भारी हैं जो कि प्रारंभिक पश्चिम भारतीय शैली की विशेषता है |
जैसा कि पहले ( पृ १३९ ) उल्लेख किया जा चुका है, आर्य नागार्जुन की अध्यक्षता में जैन परिषद् का सम्मेलन वलभि में चौथी शती में हुआ । महान् जैन तार्किक तथा द्वादसार नयचक्र के लेखक मल्लवदी ने वलभि में लगभग वि० सं० ४१४ (३५७ ई० ) में बौद्धों को वाद-विवाद में पराजित किया था । परिषद् का द्वितीय सम्मेलन वलभि में ४५३-५४ ई० में हुआ । इस युग में पश्चिम भारत
1 तुलनीय : आजानुलंब बाहुः श्रीवत्सांकः प्रशांत मूर्तिश्च दिग्वासास्तरुणो रूपवंश्च कार्येहिताम्देवाः बृहत् संहिता. 58,45. 1947. बंगलौर यह तथ्य कि वराहमिहिर के अनुसार तीर्थंकर प्रतिमाएं वस्त्रहीन हैं, संकेत देता है कि वस्त्रयुक्त श्वेतांबर मूर्तियाँ उसके समय में लोकप्रिय न थीं। इस प्रकार वे कदाचित् परवर्ती हैं ।
2 शाह ( यूपी ). अकोटा ब्रोंजेज़ 1959. बंबई. पृ 26 चित्र 8 क और 8 ख. / बृहत् कथाकोश. संपा : ए० एन० उपाध्ये. सिंधी जैन सीरीज़, 17, 131. 317 तथा परवर्ती और भूमिका, पृ 118.
3 शाह, पूर्वोक्त, 1950-51, पृ 36, स्कल्पचर्स फ्रॉम सामलाजी एण्ड रोड़ा, बड़ौदा. 1960 पृ 21 25. / शाह (यू पी ). स्टडीज इन जैन आर्ट, 1955, बनारस चित्र 29.
4 आकू यॉलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया, वैस्टर्न सर्किल प्रोग्रेस रिपोर्ट, 1914-15. पृ 30 / दीक्षित ( मोरेश्वर जी . ) हिस्टारिक एण्ड इकॉनॉमिक स्टडीज पू 63. / शास्त्री (एच जी ). मैत्रिककालीन गुंजरात पू 668-72 और पृ 671 पर नोट 168.
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