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अध्याय 12 ]
मध्य भारत उल्लेख है, जो उनके सिर पर भयंकर नाग-फण के कारण भय-मिश्रित पूज्य भाव को प्रेरित करती है। उक्त शिल्पांकित मूर्ति अब नष्टप्राय समझी जाती है । जो मूर्ति इस समय गुफा में स्थित है, वह बहुत परवर्ती काल की है । तथापि, इस शिलालेख से यह पर्याप्त स्पष्ट नहीं है कि पार्श्वनाथ की प्रतिमा इस गुफा में एक पृथक् प्रतिमा थी, क्योंकि शिलालेख में 'अचीकरत्' शब्द का उपयोग हया है, जिसका अर्थ है 'निर्माण करवाया गया'; उत्कीर्ण करने या मूर्ति को प्रतिष्ठापित करने का भाव इसमें नहीं है। हो सकता है कि शिलालेख में संदर्भ आंशिक रूप से खण्डित हो चुकी पार्श्वनाथ की उस वर्तमान प्रतिमा का हो जो गुफा की भित्ति पर उत्कीर्ण है (चित्र ६० क)।।
विदिशा के निकट बेसनगर से तीर्थंकर की एक उल्लेखनीय खड्गासन-प्रतिमा प्राप्त हुई है जो इस समय ग्वालियर संग्रहालय में सुरक्षित है। इस प्रतिमा में तीर्थकर के सिर के समीप दो उड़ती हुई मालावाहक मानव-प्राकृतियाँ हैं, वृत्ताकार प्रभामण्डल के केंद्र में कमल है तथा उसकी परिधि का बाहरी किनारा गुलाब के छोटे-छोटे फूलों से अलंकृत है। पैरों के समीप दो भक्त (शीर्षविहीन) अर्धतिष्ठमुद्रा में अंकित हैं । तीर्थंकर की घुटनों तक लम्बी भुजाएँ, कुछ-कुछ गोलाकार और चौड़े कंधे तथा धड़ की संरचना से संकेत मिलता है कि इस प्रतिमा का रचनाकाल लगभग छठी शताब्दी का उत्तरार्ध रहा होगा। इस रचनाकाल का समर्थन प्रतिमा का विशिष्ट शिरोभूषण तथा सिर के दोनों ओर प्रभामण्डल के सम्मुख उड़ती हुई मालावाहक मानव-प्राकृतियों (चित्र ६१) का अंकन भी करता है।
मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में गुप्तकालीन शिवमंदिर के लिए प्रसिद्ध नचना नामक स्थान के समीप सीरा पहाड़ी से गुप्तकालीन जैन प्रतिमाओं का एक समूह प्राप्त हुआ है, जिनमें से कुछ परवर्तीकाल की भी हैं। चित्र ६२ में तीर्थंकर पद्मासन-मुद्रा में अंकित हैं। उनके सिर के पीछे एक विस्तृत प्रभामण्डल है जिसके शीर्ष के निकट दोनों ओर उड़ते हुए गंधर्व-युगल अंकित हैं । तीर्थंकर के पार्श्व में दोनों ओर च मर-धर यक्ष खड़े हुए हैं जो मुकुट पहने हैं, और जिसके सामने का अलंकरण कुषाणों के
एज मॉफ दि इंपीरियल गुप्ताज. 1933. बनारस. पृ 104, 106, 108, 129 तथा चित्र 18./ शाह (उमाकांत
प्रेमानन्द). स्टडीज इन जैन आर्ट. 1955. बनारस. पृ 14-15. | जैन (हीरालाल). भारतीय संस्कृति में जैन-धर्म का योगदान. 1962. भोपाल. Y 391./ फिशर (क्लौस).
केव्ज एड टेम्पल्स ऑफ द जैन्स. 1956. अलीगंज. पृ 6 तथा चित्र. 2 शाह, पूर्वोक्त, चित्र 24; पूर्ववर्ती ग्वालियर राज्य के आयॉलॉजी विभाग का नेगेटिव सं. 786. ये नेगेटिव
इस समय मध्य प्रदेश के पुरातत्त्व विभाग के अधिकार में हैं और संभवतः ग्वालियर संग्रहालय में सुरक्षित हैं। 3 विक्रम-स्मृति-ग्रंथ. 1944-55 (वि. सं. 2000). ग्वालियर. पृ. 703 के सामने का चित्र. 4 इन प्रतिमाओं का विवेचन नीरज जैन ने दो चित्रों सहित अनेकांत, दिल्ली. 15, 193 222-23 पर किया है.
ये प्रतिमाएं नचना के ब्राह्मण्य मंदिरों के निकट जलाशय के समीप पहाड़ी की दो गुफाओं में लेटी हुई अवस्था में पायी गयी बतायी जाती हैं । मैने यहाँ मात्र उन्हीं प्रतिमाओं का विवेचन किया है, जिनके छाया-चित्र भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण, उत्तरी क्षेत्र, आगरा से प्राप्त हो सके हैं.
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