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अध्याय 11]
पूर्व भारत
माना है। इस शिलालेख की लिपि और पूर्वी गुफा की दक्षिणी भित्ति पर उत्कीर्ण जैन तीर्थंकरों की छह प्रतिमाओं से भी इस तिथि की पुष्टि होती है। पश्चिमी सोनभण्डार गुफा के शिलालेख के निकट ही एक तीर्थकर-प्रतिमा के निचले आधे भाग की क्षीण रूपरेखा दृष्टिगोचर होती है। गुफा के भीतर एक और शिल्पांकन की रूपरेखा है जिसमें एक ध्यानस्थ तीर्थकर और उनके साथ ही चौरी लिये हए कलात्मक नारी-मूर्ति अंकित की गयी है। गुफाओं के ये विवरण शिलालेख में वर्णित विवरणों से मिलते हैं। वैभारगिरि का संबंध दिगंबर जैन आम्नाय से रहा है, इस बात की पुष्टि ह्वेनसांग ने भी की है। उसने लिखा है कि पि-पु-लो (वैभार) पर्वत पर रहनेवाले दिगंबर 'सूर्य के समान अविराम तप-साधना करते थे ।' इस प्रकार श्वेतांबर-मुनि वज्र संबंधी प्रमाण शंकास्पद प्रतीत होता है। तीसरी-चौथी शती ईसवी के शिलालेख में जिन मुनि वज्र का उल्लेख है वे वही श्वेतांबर मुनि वज्र नहीं हो सकते जिनकी मृत्यु ५७ ईसवी में हुई थी। शिलालेख और तीर्थंकर-शिल्पांकनों की संगति दोनों सोनभण्डार गुफाओं से बैठाने के लिए, जबतक और अधिक तथ्य प्रकाश में नहीं आते, तबतक पूर्वोक्त तिथि ही मान्य होनी चाहिए।
इन गुफाओं की स्थापत्य शैली के विषय में कोई विशेष उल्लेखनीय बात नहीं है। पहली, अर्थात् पश्चिमी गुफा का माप १०.३४५.२ मीटर, प्रवेशद्वार लगभग २४१ मीटर, और एक गवाक्ष लगभग ०.६x०.७६ मीटर है। द्वार-स्तंभ ढलुवाँ हैं और उनका नीचे की अपेक्षा ऊपर का भाग लगभग १५ सेंटीमीटर का है। छत की रचना वक्र है जिसका विस्तार लगभग १.५ मीटर है। इसमें ऊपर तथा पृष्ठ १२६ में वर्णित सामान्य उभार की उत्कीर्ण तीर्थंकर-प्रतिमाओं के अतिरिक्त भीतरबाहर कहीं भी सौंदर्यात्मक महत्त्व की कोई बात नहीं है । फिर भी, इसकी भीतरी भित्तियों, द्वार-स्तंभ और सामने की भित्ति पर कुछ पुरालेख तथा अन्य शिलालेख हैं जो अब मिट-से गये हैं।
पश्चिमी गुफा की निकटवर्ती पूर्वी गुफा निचले स्तर पर स्थित है और उसकी समकालीन है।4 जब कनिंघम ने देखा था तब उसका भीतरी भाग उसकी गिरी हुई छत के मलबे से भरा हुआ था। यह गुफा आयताकार है और पश्चिमी गुफा से छोटी है । इसके उपर ईंटों का एक भवन बना हुआ
ही काष्ठनिर्मित किसी अतिरिक्त वस्तु का उपयोग किया जाता था. पूर्वी गुफा के सामने ईट की एक अतिरिक्त निमिति तथा एक बरामदा भी ध्यान देने योग्य है. ये विशेषताएं उदयगिरि की गुप्तकालीन गुफाओं में भी पायी जाती हैं. तुलनीय : प्रायॉलॉजिकल सर्वे ऑफ इण्डिया. रिपोर्टस. सपा : कनिंघम. खण्ड 10. 1880.
कलकत्ता. पृ 86. 1 कुरैशी, पूर्वोक्त, 1931, पृ 122. 2 बील, पूर्वोक्त, खण्ड 2, पृ 158. 3 कुरैशी, पूर्वोक्त, 1931, पृ 121-22./ कुरैशी तथा घोष, पूर्वोक्त, पृ 24-26. 4 मुनि वैर के शिलालेख में दो गुफाओं का उल्लेख है. 5 कनिंघम, पूर्वोक्त, 1871, पृ 25.
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