________________
वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 300 से 600 ई०
[भाग 3
इन पाँच तीर्थंकरों का चित्रण मथुरा में गुप्त-काल में प्रारंभ हा प्रतीत होता है। इनमें से एक की मूर्ति तो केन्द्रस्थ होती थी और शेष चार का चित्रण लघु-मूर्तियों के रूप में पादपीठ पर या पीछे के शिलापट्ट पर किया जाता था (उदाहरण के लिए, पु० सं० म० : बी-७, चित्र ४६; रा० सं० ल० : जे-१२१, चित्र ४७ क)। उपलब्ध स्थान के अनुसार इन्हें पद्मासन या खड्गासन मुद्रा में अंकित किया जाता था । उदाहरणार्थ, नेमिनाथ की उपर्युक्त मूर्ति के पट्ट (रा० सं० ल० : जे-१२१, चित्र ४७ क) पर तीन ध्यानस्थ मूर्तियाँ हैं और एक खड्गासन-मद्रा में ।
(५) तीर्थंकर के चक्रवर्तित्व को प्रतीक रूप में दर्शाने के लिए पादपीठ पर अंकित सिंहों का भी विशेष अध्ययन आवश्यक है। कुषाणकाल से ही वे पादपीठ के दोनों छोरों पर निम्नलिखित में से किसी एक स्थिति में चित्रित किये गये हैं (रेखा चित्र ७, १-४) : (क) सामने की ओर मुंह करके खड़े हुए (रा० सं० ल० : जे-३२, जे-३४, जे-४० आदि); (ख) सामने खड़े हुए किन्तु मुख पार्श्व की ओर, एक दूसरे की ओर देखते हुए; (रा० सं० ल० : जे-२५, जे-२६: जे-३०, जे-३३ आदि); (ग) किंचित् सामने की ओर मुँह करके खड़े हुए, (क) और (ख) के बीच की स्थिति में (रा० सं० ल० : जे-३५); और (घ) अगले पैरों को खड़ा करके पीठ से पीठ मिलाकर बैठे हए (रा० सं० ल० : जे-१४, जे-१७, जे-१८, जे-१६, जे-२७ आदि)।
गुप्त-काल में, सिंहों के अंकन में कुछ नयी शैलियाँ प्रचलित हुईं (रेखाचित्र ७, ५-६); (क) पीठ से पीठ मिलाकर उकड़ स्थिति में पूछ ऊपर उठाये हुए (पु० सं० म० : १८.१३८८, बी-६, ५७.४३३८ आदि); (ख) पीठ से पीठ मिलाकर बैठे हुए किन्तु मुख सामने की ओर तथा सामने के पंजे कुछ ऊपर उठाये हए (रा० सं० ल० : जे-११६); और (ग) सामने की ओर मुंह करके चलने की मुद्रा में खड़े हुए (पु० सं० म० : बी-७, चित्र ४६)।
प्रस्तुत कलाकृति (रा० सं० ल० : जे-१२१, चित्र ४७ क) के पादपीठ पर अत्यंत मनोरंजक प्राकृतियाँ दिखाई देती हैं। इसपर कुषाण और गुप्त-काल की विशेषताओं का अदभत समन्वय है। पादपीठ के प्रत्येक कोने में, एक चेहरा ऐसा है जिसके साथ दो शरीर जोड़े गये हैं--एक सामने से
और दूसरा पार्श्व में । पार्श्व में कुषाण-परंपरा सुरक्षित है, जबकि सामने के अंकन में गुप्तकालीन व्यवस्था पायी जाती है।
रेखाचित्र ७ में कुषाण और गुप्त-युगों के प्रचलन की क्रमशः झलक है ।
देव और किन्नर
इस वर्ग में निम्नलिखित सम्मिलित हैं : मालाधारी गंधर्व, अंतरिक्ष में भ्रमण करते सुपर्ण, तीर्थकर के दोनों ओर चमरधारी या भक्ति-मुद्रा में खड़े हुए सेवक, तथा नेमिनाथ की मूर्ति के साथ कृष्णबलदेव । इनमें से अनेक का प्रारंभ कुषाणकाल में देखा जा सकता है। गुप्त-काल में निम्नलिखित
118
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org