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________________ वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 300 ई०पू० से 300 ई० [ भाग 2 इन प्रतिष्ठानों के लिए ब्राह्मी अभिलेखों में जो संज्ञाएँ मिलती हैं वे हैं--पाज़ि (गुफा), पल्लि (गुफा और व्यापक अर्थ में विद्यालय), अतिट्टानम् (आसन या शय्या) और कंचणम् (शय्या)। कर (छत), पिण-ऊ (पर्ण) और मुशगै (आवरण) आदि स्थापत्य-विषयक शब्दों का प्रयोग भी हुआ है। ___इन स्थानों से जुड़ी हुई असमंजस में डालनेवाली एक ऐसी परंपरा भी है जो उनका संबंध पाँच पाण्डव वीरों से जोड़ती है। दक्षिण भारत में ऐसे सभी महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थानों का, जहाँ पुरावशेष विद्यमान हैं, स्थानीय अनुभूतियों के अनुसार महाकाव्यों की घटनाओं से वास्तव में अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। यह तथ्य ब्राह्मण केन्द्रों के विषय में भी उतना ही सच है जितना कि जैन और बौद्ध स्थानों के विषय में । इसीलिए, ये पहाड़ियाँ और उनकी गुफाएँ, शय्याएँ और निर्भर सामान्यतः स्थानीय बोली में पंचपाण्डवमल, पंचपाण्डवर टिप्प (या कुटु), पंचपाण्डवर पडुक्कै, ऐवशुनै आदि के नाम से जाने जाते हैं। तमिलनाडु के प्राचीन जैन केन्द्रों का अग्रलिखित सर्वेक्षण मुख्यतः भौगोलिक और क्षेत्रीय सीमाओं के आधार पर है और इसमें उन केन्द्रों की काल-क्रमागत स्थिति का यथासंभव संकेत है। गुफाओं का विवरण मदुरै जिला मदुरै तालुक १-नमल (ईसा की प्रथम-द्वितीय शताब्दियाँ)--वैगै नदी के समीप स्थित इस ग्राम में एक प्राकृतिक गुफा है जिसमें एक ब्राह्मी अभिलेख है। इसमें कई शय्याओं के उत्कीर्ण किये जाने का उल्लेख है । गुफा की विशाल प्रक्षिप्त शिला पर जैन तीर्थंकरों तथा सिद्धायिका यक्षी की परवर्ती काल की मूर्तियाँ उत्कीर्ण हैं। अभिलेख की वट्टेजुत्तु लिपि में आठवीं-नौवीं शताब्दियों के विख्यात जैनाचार्यों में से एक अज्जणन्दि का भी उल्लेख है। यह ब्राह्मी अभिलेख ईसा की प्रथम-द्वितीय शताब्दियों का माना गया है। २-अरिट्टापट्टि (ईसा-पूर्व द्वितीय - प्रथम शताब्दियाँ)--अज़गरकोयिल के मार्ग में मेलूर से आठ किलोमीटर पर अरिट्टापट्टि नामक ग्राम है । ग्राम में एक पहाड़ी है, जिसे वहाँ कज़िंजमलै कहते हैं। पहाड़ी के पूर्वी भाग में एक गुफा है जिसके शिला-प्रक्षेप पर एक परनाला उकेरा हुआ है। गुफा के शीर्ष पर उत्कीर्ण एक ब्राह्मी अभिलेख में उल्लेख है कि उस गुफा का दान नेल्वेलि के 1 रामन् (के वी) तथा सुब्बरायलु (वाइ). ए न्यू तमिल ब्राह्मी इंस्क्रिप्शन इन अरिट्टापट्टि. जर्नल ऑफ इण्डियन हिस्ट्री. 49%; 1971; 229-32. 100 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001958
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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