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अध्याय 8
पश्चिम भारत
मध्ययुगीन जैन परंपराओं से विदित होता है कि महावीर ने पश्चिम भारत, विशेषत: दक्षिण-पश्चिम राजस्थान में भिनमाल (भिल्लमाल) और प्राबू पहाड़ के समीप मुण्डस्थल (आधुनिक मुंगथला), का भ्रमण किया था। पूर्णचन्द्र सूरि द्वारा भिनमाल में महावीर-मंदिर की प्रतिष्ठा का उल्लेख करनेवाले वि० सं० १३३४ (१२७७ ई.) के एक शिलालेख से विदित होता है कि महावीर भिल्लमाल पधारे थे। मुंगथला के जैन मंदिर से प्राप्त एक परवर्ती शिलालेख वि० सं० १४२६ (१३६६ ई०) से भी ज्ञात होता है कि महावीर इस स्थान पर आये थे। किन्तु महावीर का विहार केवल पूर्वी भारत तक ही सीमित रहा जान पड़ता है। पूर्व में वे लाढ़ (राढ़) गये जहाँ उन्हें स्थानीय आदिवासियों के हाथों बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा।
___ मौर्यशासन पश्चिम में राजस्थान में कम से कम बैराट तक, गुजरात में गिरनार तक और दक्षिणापथ में सोपर तक फैला हुआ था, जैसा कि इन स्थानों पर प्राप्त अशोक की राजाज्ञाओं से प्रमाणित होता है । और, यह बहुत संभव है कि ये भाग उसके पौत्र सम्प्रति के नियंत्रण में बने रहे जिसका जैन धर्म का संरक्षकत्व बृहत्कल्पभाष्य और निशीथ-चूर्णि' जैसे आद्य ग्रंथों से भलीभाँति प्रमाणित है। किन्तु इन क्षेत्रों से जैन कला का ऐसा कोई अवशेष प्राप्त नहीं हुआ जिसे निस्संदेह मौर्य या शुंग-युग का कहा जा सके।
अजमेर जिले के बरली नामक स्थान से एक खण्डित शिलालेख प्राप्त हुआ है जिसमें महावीर के पश्चात् ८४ वर्ष और मझमिका (मध्यमिका--चित्तौड़गढ़ के पास 'नगरी' नामक आधुनिक स्थान) का उल्लेख है। जो भी हो, डी० सी० सरकार का मत है कि इसे वीरात ८४ मानने के लिए प्रमाण
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