SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रध्याय 71 पूर्व भारत से चबूतरे तक ऊंचा होता जाता था। दोनों ओर आधार-भित्तियों पर सधा हुआ और कंकरीले शिलापट्रों से आच्छादित यह ढलुवाँ मार्ग एक रथ के सरलता से निकलने के लिए भी पर्याप्त चौड़ा था । . गुफा सं० १७ में प्रवेश की सीढ़ियों के पास चबूतरे की आधार-भित्तियों के किनारे के मलबे में उत्कीर्ण वेदिकाओं के कुछ टुकड़े और उकेरी हुई स्त्री-मूर्ति का ऊपरी भाग (चित्र ३६) मिला था। ये सब बलुए पत्थर से निर्मित पहली शती ई० पू० के थे। अपनी आयोजना के कारण अर्धवृत्ताकार भवन अपने ढंग का एक ही है जिसका उदाहरण अभी तक उड़ीसा के परवर्ती मंदिरों में नहीं मिल सका है। आयोजना से स्वत: उसकी प्राचीनता का ज्ञान होता है। जो भी हो, इस भवन की तिथि अनिश्चित है, किन्तु पारिस्थितिक साक्ष्य से अनमानित की जा सकती है । जैसा कि पहले बताया जा चुका है, यह भवन पहाड़ी की चोटी पर बना है जिसके ठीक नीचे की गुफा (हाथीगुम्फा, गुफा सं०१४) के ऊपरी सिरे पर खारवेल का सुप्रसिद्ध शिलालेख उत्कीर्ण है जिसमें अन्य बातों के अतिरिक्त वह अपने क्रिया-कलापों का वर्णन करता है, जिनमें पहाडी (आधनिक उदयगिरि) पर गफाओं का उत्खनन, एक प्रस्तर-भवन और स्तंभ का निर्माण सम्मिलित है । स्थापत्य की दृष्टि से हाथीगुम्फा महत्त्वहीन है। वस्तुतः यह असमान आकार की एक बड़ी प्राकृतिक गुफा है, जिसकी पार्श्वभित्तियों के छेनी से काटे-संवारे पृष्ठभाग यह दर्शाते हैं कि मानव ने यहाँ यदा-कदा आयोजित संगीतियों के लिए एक विहार के रूप में उनका विकास कर लिया था। भित्तियों पर कुछ नाम खुदे हैं जो सम्भवतः तीर्थयात्रियों के हैं, इनमें से कुछ गुप्तकालीन लिपि में हैं। इतनी महत्त्वहीन गुफा के शीर्ष पर एक शक्तिसंपन्न शासक के महत्त्वपूर्ण अभिलेख की विद्यमानता, यह मानकर पूर्णरूपेण समझ में आ सकती है कि स्वयं खारवेल ने ही इस गुफा के ऊपर अर्धवृत्ताकार भवन का निर्माण कराया था। जैसा कि हम पहले कह चुके हैं, गुफाओं के अंतरिम भाग अत्यंत सादे हैं। तो भी अनेक गुफाओं की कोठरियों के मुखभाग प्रवेशद्वारों के ऊपर पशु-शीर्षयुक्त अर्धस्तंभों पर टिके हुए शिल्पांकित तोरणों (चित्र ३१) द्वारा सजाये गये हैं। शिल्पांकित तथा मूर्तियुक्त टोड़ों (चित्र ३२ और ३३) पर आधारित वेदिकाओं (चित्र २४ और ३१) और तोरणों को प्रायः एक दूसरे से जोड़ दिया गया है। कुछ गुफाओं में वेदिका-स्तंभों के ऊपरी भाग में आकर्षक शिल्पाकृतियाँ (चित्र २४, ३० और ३३ ख) हैं जिनमें धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष दृश्य अंकित किये गये हैं। शिल्पांकनों में से कुछ की विषय-वस्तु वर्णनात्मक है (चित्र ३२ ख और ३३ ख) । अनंतगुम्फा जैसी कुछ गुफाओं के तोरण-शीर्षों पर भी शिल्पांकन हैं (चित्र २७ और २८)। स्तंभों पर आधारित, बरामदों की छतों सहारा देनेवाले टोड़े भी शिल्पांकित तथा मूर्तियुक्त हैं। बरामदों के अर्धस्तंभों में से कुछ के सामने बहदाकार मानवाकृतियाँ, अधिकांशतः द्वारपालों की मूर्तियाँ, उकेरी हुई हैं। मूर्यंकन तथा शिल्पांकन 85 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001958
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy