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________________ वास्तु- स्मारक एवं मूर्तिकला 300 ई० पू० से 300 ई० [ भाग 2 अर्धवृत्ताकार भवन के उत्तरी सिरे पर तलशिला को काटकर और भराव के समानांतर कंकरीले शिलाखण्डों से ढँककर नाली बनायी गयी थी जो पानी के प्रवाह को बाहर निकाल दे । वृत्ताकार भवन के कुछ नीचे, और दिखने में उससे असंबद्ध, एक छोटा आयताकार कक्ष था, जिसके कंकरीले शिलाखण्डों का एक रद्दा (स्तर) अब शेष है । प्रतीत होता है कि इस स्थल पर यह पहला भवन था । निश्चित प्रमाण के अभाव में यह कहना कठिन है कि वृत्ताकार गर्भगृह में प्रतिष्ठापित वस्तु स्तूप थी, मंगल-प्रतीक था या तीर्थंकर की प्रतिमा थी । इनमें से तीसरा विकल्प स्वयं ही प्रमाणित नहीं होता क्योंकि इन गुम्फात्रों के मूल शिल्पांकन में तीर्थंकरों की आकृतियों का सर्वथा अभाव है । इसके विपरीत हमें खण्डगिरि की गुफा सं० ३ ( अनंत गुम्फा) और उदयगिरि की गुफा सं० ५ ( जयविजय गुम्फा) के मुखभागों पर कल्पवृक्ष ( चित्र २७ ) के पूजन का अंकन मिलता है। साथ ही, खण्डगिरि गुम्फा सं० ३ की पिछली भित्ति पर उकेरे हुए पादपीठ पर एक नन्दिपथ उत्कीर्ण है जिसके पार्श्व में दोनों ओर तीन प्रतीक - - त्रिकोण शीर्षयुक्त प्रतीक, श्रीवत्स और स्वस्तिक हैं । इन सबका अंकन मथुरा के प्रयाग-पटों में हुआ है । उदयगिरि की गुम्फा सं० ६ ( मंचपुरी) के मुखभाग पर अंकित जिस उपास्य - निर्मिति की पूजा एक राजपरिवार कर रहा है वह निश्चय ही तीर्थंकर की प्रतिमा नहीं है, यद्यपि विकृति के कारण उसकी सही पहचान संभव नहीं है । विकृत बिम्ब ( जो आकार में कुछ बेलनाकार है) के ऊपर कदाचित् एक छत्र है जो एक ऊँचे और संभवत: गोल मंच पर रखा है । पूर्वोक्त तथ्यों के आधार पर और गर्भगृह की वृत्ताकार आयोजना को ध्यान में रखकर यह जान पड़ता है कि उपास्य वस्तु या तो स्तूप या फिर वृत्ताकार पादपीठ पर रखा हुआ पावन प्रतीक रही होगी । एक उल्लेखनीय लक्षण, जिसकी व्याख्या साक्ष्य के अभाव में संभव नहीं है, वृत्ताकार भवन के बीच में एक अपरिष्कृत खण्डित शिला थी जिसपर थे वर्गाकार उकेरनी तथा छेनी के चिह्न । कोटर में मूलतः पुरावशेष थे या यह छत्रदण्ड का आधार था या फिर पवित्र चिह्न की चूल, यह अब केवल अनुमान का विषय रह गया है । हाथीगुफा के सामने की गयी व्यवस्था से प्रमाणित होता है कि वृत्ताकार भवन का यह बिम्ब अत्यंत पुनीत था और यात्रियों को आकर्षित करता था । जैसा कि पहले कहा जा चुका है उदयगिरि की चोटी सँकरी है । वस्तुतः अर्धवृत्ताकार भवन पहाड़ी के इस विशिष्ट भाग को लगभग पूरा ही इस प्रकार प्रवृत्त करता है कि बचा हुआ शेष स्थान इतना चौड़ा नहीं रहा कि वहाँ बड़ी संख्या में लोग एकत्र हो सकें । हाँ, कभी-कभी लोगों के एकत्र होने पर श्रावश्यक स्थान की व्यवस्था करने के लिए हाथीगुम्फा के सामने गुम्फा सं० ६ और १७ की ओर की भित्तियों के निकट आवश्यक भराई करवाकर एक अस्थायी चबूतरा बना लिया जाता था । इस चबूतरे पर पहुँचने के लिए एक ढलुवाँ मार्ग ( चित्र ३५) बनाया जाता था जो क्रमशः पहाड़ी की तलहटी Jain Education International 84 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001958
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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