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वास्तु-स्मारक एवं मूर्तिकला 300 ई० पू० से 300 ई०
[भाग 2 APSIDAL STRUCTURE, UDAYAGIRI
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रेखाचित्र 4. उदयगिरि : पहाड़ी अधित्यका पर अर्धवृत्ताकार भवन की रूपरेखा
स्तर (रद्दे) मिले हैं । भवन के भीतर उसके अर्धवृत्ताकार सिरे पर एक वर्तुलाकार भित्ति बनी हुई थी जिसका अब कंकरीले शिलाफलकवाला केवल एक ही स्तर (रद्दा) शेष रह गया है। इस अर्धवृत्ताकार भवन के भीतर अधिकांश भाग कंकरीले शिलापट्टों से बनाया गया है और उसके नीचे कंकरीली मिट्टी भरी गयी है। उत्तरी किनारे की ओर, जहाँ बलुए पत्थर की तलशिला कुछ ऊंची थीं, स्वयं शिला को ही भराव (खडंजा) के समानांतर कर दिया गया है । इससे प्रतीत होता है कि प्रस्तर-खण्डों को जोड़कर बनाया गया धरातल फर्श के उद्देश्य से नहीं बनाया गया था अपितु कुछ ऊंचा बनाया गया था ताकि वह तलशिला और प्रस्तर-खण्ड दोनों को ढंक दे । संभवतः प्रस्तरखण्डों को बिछाने का उद्देश्य यह था कि पहाड़ी की चोटी के गढ्ढे भर जायें और एक ठोस तलवाली भूमि प्राप्त हो सके।
वृत्ताकार भित्ति के कुछ पत्थरों के बाहरी किनारे उस खड़जा के ऊपर आधारित थे। जो भी हो, वृत्ताकार भित्ति में इसके कोई चिह्न नहीं मिलते । अर्धवृत्ताकार भवन के ढाँचे के भीतर वृत्ताकार भित्ति के सामने भराव की आयताकार भूमि पर बनी भित्तियाँ एक कक्ष का निर्माण करती थीं यद्यपि इस कक्ष के तीन ओर की भित्तियाँ अर्धवृत्ताकार भवन के समानांतर बनी हई थीं। वृत्ताकार भवन की ही भित्ति का एक भाग कक्ष के पीछे की भित्ति का काम देता था क्योंकि
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