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अध्याय 7]
पूर्व भारत कुछ स्थानों पर सीपी चूने के पलस्तर के उखड़े हुए भागों से ज्ञात होता है कि गुफाओं की भित्तियों पर कभी पलस्तर किया गया था ।
गुफाओं को दो मोटे वर्गों में विभाजित किया जा सकता है--पहली सादी और बिना स्तंभ के बरामदेवाली; और दूसरी, सुव्यवस्थित स्तंभयुक्त बरामदेवाली । इस वर्गीकरण में कालक्रम का कोई महत्त्व है या नहीं, यह निश्चित नहीं किया जा सकता यद्यपि सामान्य आधारों पर पहले वर्ग की कुछ गुफाएं दूसरे वर्ग की गुफाओं से पहले की प्रतीत होती हैं । पहले वर्ग की गुफाएं छोटी हैं। अधिकांशतः ये सामने की ओर खुली हैं और उनमें वास्तु संबंधी कोई अलंकरण नहीं है। कुछ गुफाओं में कोठरी की छत आगे निकली हुई है, जिससे एक बरामदा-सा बन जाता है; यथा, उदयगिरि की गुफा सं० १२ (बाघ गुम्फा) । अधिकांश गुफाओं के, जो सामने से पूर्णतः खुली हुई हैं, मुखभाग पर समानांतर उरेखन देखा जा सकता है । यह ज्ञात नहीं है कि ऐसा कोठरी से बरसाती पानी बाहर निकलने के लिए किया गया था या फिर काष्ठनिर्मित कोई वस्तु रखने के लिए। इनपर शिलालेख नहीं होने के कारण इन गफाओं की तिथि निश्चित कर सकना कठिन है।
यदि हम दुसरे वर्ग की गफाओं के वास्तु संबंधी लक्षणों का परीक्षण करें तो उनके पथकपृथक् निर्माणकाल में अधिक अंतर प्रतीत नहीं होता । स्थापत्य की दृष्टि से ये गुफाएं एक समरूप वर्ग की हैं, जिनमें विकास की कोई उल्लेखनीय प्रगति परिलक्षित नहीं होती। सभी की विशेषता है एक प्रस्तर-पीठयुक्त बरामदा । इनके स्तंभ एक ही प्रकार के हैं, जो नीचे और ऊपर वर्गाकार हैं तथा मध्य में अष्टकोणाकार हैं । वर्गों के कोण इस प्रकार ढलुवाँ बने हैं कि संक्रमण स्थलों पर (चित्र २३) अर्धवृत्त बन गये हैं। कोठरियों के मुखभागों, भित्ति-स्तंभों, तोरणों और वेदिकाओं (चित्र ३१) के अलंकरण एक जैसे हैं, कहीं-कहीं गोटों की संरचना अर्धगोलाकार छतों के समान है । इनमें से कोई भी किसी विशिष्ट स्थापत्य परंपरा का आभास नहीं देती। उनके वास्तुशिल्पीय लक्षणों और शिलालेखों की पुरालिपि के आधार पर उनका निर्माणकाल ईसा-पूर्व प्रथम शती तथा कुछ-कुछ दूसरी शती में भी संभव माना जा सकता है।
जैसा कि पहले बताया जा चुका है (पृष्ठ ७६), इस युग की सभी शैलोत्कीर्ण गुफाएं जैन मुनियों के आवास हेतु बनायी गयी थीं और उनमें से किसी का भी निर्माण मंदिर के रूप में नहीं किया गया था। इससे स्पष्ट है कि पूजा के लिए इन पहाड़ियों के ऊपर कोई पृथक् निर्मित-भवन अवश्य रहा होगा । सौभाग्य से, प्रस्तुत पंक्तियों की लेखिका द्वारा उदयगिरि पहाड़ी की ऊबड़-खाबड़, ढलुवाँ और संकुचित चोटी पर, खारवेल के शिलालेखवाली शिला की चोटी के ठीक ऊपर, थोड़ी खुदाई करवाने पर एक बृहत् अर्धवृत्ताकार भवन (रेखाचित्र ४, चित्र ३४) का निचला भाग दृष्टिगोचर हुआ। निस्संदेह यह भाग ही पूजा का स्थान था।
खुदाई करने पर इस भवन की बाहरी भित्ति की अक्षवत् लंबाई २३.७७ मीटर और आधारिक चौड़ाई १४.६२ मीटर पायी गयी। यह कंकरीले शिलापट्टों से बनी है जिसके अधिकतम आठ
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