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________________ अध्याय 6 ] मथुरा विहार ईंटों से निर्मित थे तथा स्तंभों, भित्ति-स्तंभों, चौखटों, वातायनों, पटरियों तथा जलनिर्गमप्रणाली में सामान्यतः पत्थरों का उपयोग किया जाता था। जल-निर्गम प्रणाली के कुछ नमूनों से पता चलता है कि उनपर भी प्रचुर शिल्पांकन किये जाते थे। उनकी भुजाएं मत्स्य और मत्स्यपुच्छवाले मकर जैसे जलचर प्राणियों (जिनमें कभी-कभी मकर मत्स्य का पीछा करता हुआ अंकित होता था) तथा मांगलिक प्रतीकों से अलंकृत की जाती थीं। वातायनों के कुछ नमूने प्राप्त हुए हैं। एक अक्षत वातायन में चारों कोनों के जोड़ों पर वर्गाकार जाली बनायी हुई है, केन्द्रीय भाग की जाली में हीरक पंक्तियों का काम किया हुआ है। उसकी भुजाओं पर चार पंखुड़ियों वाले पुष्प अंकित हैं। एक खण्डित जाली में पुष्प-समूह अंकित किये गये हैं। प्रत्येक पुष्प में चार पंखुड़ियाँ हैं। एक अन्य खण्डित वातायन में अष्टदल कमल अंकित है। एक खण्डित तोरण-शीर्ष, जो आधे से कुछ ही कम है और अब राष्ट्रीय संग्रहालय में है (चित्र १२ और १३), बहुत ही आकर्षक एवं ध्यान देने योग्य है। यह संभवतया किसी मंदिर का खण्ड होगा, जबकि सामान्यतः विश्वास यह किया जाता है कि यह स्तूप के किसी तोरण का है। यह खण्डित तोरण-शीर्ष दोनों ओर प्रचुरता एवं सावधानीपूर्वक उत्कीर्ण किया हुआ है तथा अलंकरण का विन्यास दोनों ओर लगभग एक समान है। प्रत्येक अोर तीन अर्द्धवृत्ताकार (आधे विद्यमान) फलक हैं जो वानस्पतिक तथा विसपी लताओंवाले कला-प्रतीकों से अलंकृत चार पट्टियों के भीतर हैं। इसके पुरोभाग के कोने में जो त्रिभुजाकार स्कंध है उसमें स्तूप की ओर जा रहा भक्तजनों का एक समूह शिल्पांकित है; स्तूप के सम्मुख चार पीठिकाएं हैं जिनके ऊपर पायाग-पट है; जब कि भक्तजनों के चरणों के नीचे एक पहियेदार बंद गाड़ी है। पृष्ठभाग के स्कंध में इसी प्रकार की एक गाड़ी के ऊपर उपासकों का अपेक्षाकृत एक अधिक बड़ा समूह है; भक्तों के इस समूह के सम्मुख एक पूर्ण घट, कमलदलाकार टोकरी जिसमें मालाएं रखी हुई हैं तथा ढक्कनों से ढके हुए तीन कटोरे हैं । दोनों ओर की चंद्राकार फलकों के सिरों में मत्स्य-पुच्छवाले मकर बने हुए हैं। पाँच फलकों में इन मकरों का मुख बाल-प्राकृतियों द्वारा खोला जा रहा है। दोनों ओर की फलकों के उपलब्ध अंशों के शेष भाग में पुरुष, महिलाएं तथा उड़ते हुए विद्याधर अंकित हैं जो उन इष्टदेवों की ओर जा रहे हैं जो फलकों के केन्द्रीय भाग (विलुप्त) में अंकित थे। कुछ भक्तजन पैदल हैं, जबकि अन्य वृषभों तथा अश्वों द्वारा खींची जा रही गाड़ियों में हैं। इनके अतिरिक्त कुछ और भी भक्तजन हैं, जो मत्स्य-पुच्छ तथा सर्पो की-सी देहवाले विचित्र पशुओं की पीठ पर सवार हैं। शीर्षस्थ फलक के पुरोभाग में एक विमान अंकित है जिसे संभवतया हंस खीच रहे हैं । अर्धबेलनाकार छतवाली एक आयताकार संरचना भी है जिसके दोनों सिरों पर चैत्य-तोरण हैं और आधार में एक वेदिका है । के पार्श्व में तोरण जैसे प्रक्षेप हैं. कुटीर की रूपरेखा चतुर्भुजाकार (चतुःशाला) प्रतीत होती है. छतें जो संभवतः खपरैलवाली थीं, त्रिभुजाकार हैं और उनके प्रत्येक सिरे पर एक त्रिकोण है. 1 स्मिथ, पूर्वोक्त, चित्र 42. 2 वही, चित्र 41. 65 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001958
Book TitleJain Kala evam Sthapatya Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLakshmichandra Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages366
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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