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________________ कारणवाद अनादि अनन्तता काल के द्वारा ही सिद्ध हो सकती है । क्रिया और जीव के कर्मबंधादि क्रिया भी काल के कारण संभव है । समय मुहूर्तादि भी काल के ही कारण संभव है । अन्त में यह कहा गया है कि काल ही भूतों को पक्व करता है, काल ही प्रजा का संहरण करता है । काल ही सोए हुए को जगाता है। अतः काल दुरतिक्रम है । काल ही पदार्थों की उत्पत्ति करता है, उत्पन्न पदार्थों का पाक करता है अर्थात् उत्पन्न पदार्थ का संवर्धन काल से ही होता है । वही अनुकूल नूतन पर्यायों को उपस्थित कर उनके योग से उत्पन्न वस्तु को उपचित करता है । काल ही उत्पन्न वस्तुओं का संहार करता है अर्थात् वस्तु में विद्यमान पर्यायों की विरोधी नवीन पर्याय का उत्पादन काल के कारण ही होता है और इस प्रकार पूर्व पर्याय का नाश संहार भी काल के कारण होता है। अन्य कारणों के सुप्त-निर्व्यापार रहने पर काल ही कार्यों के सम्बन्ध में जाग्रत रहता है । अतः यह कह सकते हैं कि सृष्टि, स्थिति, प्रलय के हेतुभूत काल का अतिक्रमण करना कठिन है । खण्डन :- द्वादशारनयचक्र में कालवाद का खण्डन संक्षेप में ही किया गया है । स्वभाववाद के उपस्थापन में कालवाद का खण्डन करते हुए यह कहा गया है कि १. वस्तु अपने स्वभाव के ही कारण उस रूप में होती है । २. काल को ही एकमात्र तत्त्व मानने पर तो कार्य-कारण का विभाग संभावित नहीं हो सकेगा । १. काल: पचति भूतानि कालः संहरति प्रजाः । काल: सुप्तेषु जागति कालो हि दुरतिक्रमः ॥ द्वा० न० पृ० २१८. २. काल एव हि भूतानि कालः संहारसंभवौ । स्वपन्नपि स जागति कालो हि दुरतिक्रमः ॥ - वही, पृ० २१९. ३. ननु तैः सर्वैः ‘स्वभाव एव भवति' इति भाव्यते । वही, पृ० २१९. ४. कालस्यैव तत्त्वात् कारणकार्यविभागाभावात् सामान्य-विशेषव्यवहाराभाव एवेति चेत, एवमपि स एव स्वभावः । पूर्वादिव्यवहारलब्धकालाभावश्चैवम्, अपूर्वादित्वात् नियतिवत् । युगपदयुगपद् घटरूपादीनां व्रीह्यङ्करादीनां च तथा भवनादेव तु स्वभावोऽभ्युपगतः । - वही, पृ० २२१-२२२. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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