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कारणवाद
संयोग पहले ही क्यों नहीं हो जाता ? इसका उत्तर काल द्वारा ही दिया जा सकता है । अतः काल को ही असाधारण कारण अर्थात् एकमात्र कारण मानना पड़ेगा।
- काल को यदि कार्य मात्र के प्रति असाधारण कारण न माना जायेगा तो गर्भ आदि सभी कार्यों की उत्पत्ति अव्यवस्थित हो जायेगी । यदि किसी अन्य हेतुवादी की दृष्टि गर्भ का हेतु माता-पिता आदि हैं, यह माना जाए तो प्रश्न होगा कि उनका सन्निधान होने पर तत्काल ही गर्भ का जन्म क्यों नहीं हो जाता है । मल्लवादी के द्वादशारनयचक्र (प्रायः ईस्वी ५५०-५७५) में कालवाद की प्रतिस्थापना करते हुए वैशेषिकसूत्र (ईस्वी आरंभकाल) का निम्न सूत्र प्रस्तुत किया गया है ।
अपरस्मिन्नपरं युगपत् चिरं क्षिप्रमिति काललिङ्गानि । यह इससे पूर्व है, यह इसके पश्चात् है, ये दोनों एकसाथ हैं । इस प्रकार का ज्ञान एवं नवीन और प्राचीन का जो ज्ञान होता है उसका हेतु काल को समझना चाहिए । जैसे वायु गुणवाला होने से द्रव्य है ऐसे ही काल भी गुणवाला होने से द्रव्य है । जैसे अन्य द्रव्य से उत्पन्न न होने से नित्य है इसी प्रकार काल भी अन्य द्रव्य से उत्पन्न न होने से नित्य है । काल एक है । वर्तमान, भूतादि काल का विभाजन कार्य के होने से होता है। अतः वह भेद गौण है।
जैनदर्शन में तत्त्वार्थाधिगमसूत्र (ई. सन् तीसरी-चौथी शदी) में काल के निम्न लक्षण प्रतिपादित किए गए हैं:
वर्तना परिणाम क्रिया: परत्वापरत्वे च कालस्य ॥२२॥ ५ परिवर्तन, परिणमन, क्रिया, परत्व, अपरत्व ये काल के लक्षण हैं । उमास्वाति द्वारा प्रस्तुत ये लक्षण वैसे तो वैशेषिकसूत्र में प्रस्तुत
१. कालाभावे च गर्भादि सर्वं स्यादव्यवस्थया । ___परेष्ट हेतु सद्भावमात्रादेव तदुद्भवात् ॥ वही, स्त. २, १६८, पृ० ४६. २. वैशेषिकदर्शन, २.२.६. ३. तत्त्वार्थाधिगमसूत्र, ५/२२.
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