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________________ कारणवाद काल के कारण ही सूर्य तपता है, समस्त भूतों का आधार काल ही है । काल के कारण ही आँखें देखती हैं, काल ही ईश्वर है और प्रजापति का पिता भी काल ही है । इस प्रकार अथर्ववेद का उक्त वर्णन काल को ही सृष्टि का मूल कारण मानने की ओर है; किन्तु महाभारत (प्रायः ई. पू. १५०-ईस्वी ४००) में तो उससे भी आगे समस्त जीव सृष्टि के सुख-दुःख, जीवन-मरण इन सबका आधार भी काल को ही माना गया है। कर्म से, चिन्ता से या प्रयोग करने से कोई भी वस्तु प्राप्त नहीं होती, किन्तु काल से ही समस्त वस्तुएँ प्राप्त होती हैं । सब कार्यों के प्रति काल ही कारण है । योग्य काल में ही कलाकृति, औषध, मन्त्र आदि फलदायक बनते हैं। काल के आधार पर ही वायु चलती है, पुष्प खिलते हैं, वृक्ष फलयुक्त बनते हैं, कृष्णपक्ष, शुक्लपक्ष, चन्द्र की वृद्धि और हानि आदि काल के प्रभाव से ही होती है । किसी की मृत्यु भी काल होने पर ही होती है और बाल्यावस्था, युवावस्था या वृद्धावस्था भी काल के कारण ही आती है। गर्भ का जन्म उचित काल के अभाव में नहीं होता है। जो लोग गर्भ को स्त्री-पुरुष के संयोग आदि से जन्म मानते हैं, उनके मत में भी उचित काल के उपस्थित होने पर ही गर्भ का जन्म होता है । गर्भ के जन्म में गर्भ की परिणत अवस्था ही कारण है यह नहीं कहा जा सकता क्योंकि यदा-कदा १. कालादापः समभवन्कालाद्ब्रह्म तपो दिशः । कालेनोदेति सूर्यः काले नि विशते पुनः ॥ अथर्व०, पृ० ४०६. कालेन वातः पवते कालेन पृथिवी मही । द्यौर्मही काल आहिता ॥ वही, पृ० ४०६. कालो ह भूतं भव्यं च पुत्रो अजनयत्पुरा । कालादृचः समभवन्यजुः कालादजायत । वही, पृ० ३. कालो यज्ञं समैरयद्देवेभ्यो भागमक्षितम् । काले गन्धर्वाप्सरसः काले लोकाः प्रतिष्ठिताः ॥ वही, पृ० ४. २. न कर्मणा लभ्यते न चिन्तया वा नाप्यस्ति दाता पुरुषस्य कश्चित् । पर्याययोगाद् विहितं विधात्रा कालेन सर्वे लभते मनुष्यः ।।-महाभारत, “शान्तिपर्व,” २५/५. न बुद्धिशास्त्राध्ययनेन शक्यं प्राप्तुं विशेषं मनुजैरकाले । मूर्योऽपि चाप्नोति कदाचिदर्थान् कालो हि कार्ये प्रति निविशेषः ॥ वही, "शान्तिपर्व," २५/६. ३. नाभूतिकालेषु फलं ददन्ति शिल्पानि मन्त्राश्च तथौषधानि । तान्येव कालेन समाहितानि सिद्ध्यन्ति वर्धन्ति च भूतिकाले ॥ वही, “शान्तिपर्व," २५/७. ४. म० 'शां०', अ. २५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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