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________________ द्वितीय अध्याय अनुभव और बुद्धिवाद की समस्या सामान्यतया मानवीय ज्ञान ऐन्द्रिक अनुभूति पर निर्भर रहता है किन्तु इसके साथ ही मनुष्य की तर्कबुद्धि भी ज्ञान का एक महत्त्वपूर्ण साधन मानी जाती है । यद्यपि तर्कबुद्धि का आधार भी ऐन्द्रिक अनुभूतियाँ ही होती हैं किन्तु तर्कबुद्धि उनसे भी आगे जाकर ज्ञानात्मक सामान्य निर्णय प्रदान करती है । अनुभूति और तर्कबुद्धि को सामान्यतया ज्ञान के प्रामाणिक साधनों के रूप में अति प्राचीन काल से ही स्वीकृति प्राप्त हुई है किन्तु इन दोनों के अतिरिक्त श्रुति, आगम या शब्द भी प्रामाणिक ज्ञान का एक प्रमुख साधन माना जाता रहा है । जब हम शब्द प्रमाण की चर्चा करते हैं तब भी हमें स्मरण रखना चाहिए कि उसका आधार भी अतीन्द्रिय अनुभूति ही है । आध्यात्मिक एवं ज्ञानात्मक दृष्टि से विकसित व्यक्तियों के जो अतीन्द्रिय अनुभव होते हैं वे ही जाति या आगमप्रमाण के रूप में मान्य किए जाते हैं । २ यद्यपि शब्द प्रमाण या १. आत्मा वा अरे दृष्टव्यः श्रोतव्यो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यः । मैत्रिय ! आत्मनो वा अरे दर्शनेन श्रवणेन मत्या विज्ञानेनेदं सर्वं विदितम् ॥ आगमेनानुमानेन ध्यानाभ्यासरसेन च । त्रिधा प्रकल्पयन् प्रज्ञां लभते योगमुत्तमम् ॥ २. सकलावरणमुक्तात्म केवलं यत् प्रकाशते । प्रत्यक्षं सकलार्थात्मसतत प्रतिभासनम् ॥२७॥ Jain Education International बृहद् आरण्यकोपनिषद् २.४.५ योगसूत्र १.४८ के भाष्य में उद्धृत न्यायावतारवार्तिक-वृत्ति, पृ० ३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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