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________________ जैन दार्शनिक परम्परा का विकास मार्ग है। मार्ग के तीन भेद करने का कारण यह है कि प्रथम के चार विधि भंग हैं । द्वितीय चतुष्क उभयभंग हैं और तृतीय चतुष्क नियम भंग हैं । ये तीनों मार्ग क्रमशः नित्य, नित्यानित्य और अनित्य की स्थापना करते हैं । नेमि को लोहवेष्टन से मण्डित करने पर वह और भी मजबूत बनती है, अतएव चक्र को वेष्टित करनेवाले लोहपट्ट के स्थान में सिंहगणि विरचित नयचक्रवालवृत्ति है । इस प्रकार नयचक्र अपने यथार्थ रूप में चक्र है। चक्र की उपमा और उसकी महत्ता नयचक्रकार आचार्य मल्लवादी ने चक्र की उपमा के विषय में ग्रन्थ के अन्त में कहा है कि जिस प्रकार चक्रवर्ती बनने के लिए चक्ररत्न की आवश्यकता होती है उसी प्रकार दार्शनिक जगत् में वादिचक्रवर्तित्व प्राप्त करने के लिए नयचक्र की आवश्यकता है ।२ नयचक्र में वर्णित वाद के अवलोकन से यह ज्ञात होता है कि आचार्य मल्लवादी ने तत्तत् दर्शनों के सिद्धातों का प्रस्तुतीकरण बहुत ही प्रामाणिक रूप से किया है। साथ ही उनकी समीक्षा भी की है । इस ग्रन्थ में तत्कालीन सभी दार्शनिक मतों का स्थापन एवं खण्डन किया गया है । अतः इसी एक ग्रन्थ के अध्ययन से सभी भारतीय दर्शनों का बोध हो जाता है, इसमें कोई संदेह नहीं है । इस प्रकार सामर्थ्य की दृष्टि से चक्ररत्न के साथ इसकी जो तुलना की गई है वह उचित ही है। यहाँ हम जैनदर्शन में प्रचलित कालचक्र की रचना के साथ भी नयचक्र की तुलना कर सकते हैं । नयचक्र में बारह अर हैं, कालचक्र में भी बारह अर हैं । जैसे नयचक्र में द्रव्यार्थिक एवं पर्यायार्थिक ऐसे दो विभाग हैं उसी प्रकार कालचक्र में भी उत्सर्पिणी एवं अवसर्पिणी ये दो विभाग हैं । कालचक्र में एक-एक विभाग में छह-छह प्रविभाग होते हैं उसी प्रकार नयचक्र के दोनों विभागों के भी छह-छह विभाग किए गए हैं । कालचक्र अविरत भ्रमण करता रहता है उसी प्रकार नयचक्र भी अविरत गति करता १. श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ, पृ० २०२-२०३. २. नयचक्रशास्त्रं श्रीमच्छवेतपट मल्लवादिक्षमाश्रमणेन विहितं भरतचक्रवर्तिना चक्ररत्नमिव जैनानां वादिचक्रवर्तित्वविधये। द्वादशारं नयचक्र पृ० ८८६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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