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________________ जैन दार्शनिक परम्परा का विकास मल्लवादी की निम्नोक्त कृतियों का उल्लेख प्राप्त होता है : *** (१) सम्मइपयरणटीका (२) द्वादशार- नयचक्र (३) पद्मचरित (१) सम्मइपयरणटीका जैन दर्शनाचार्य सिद्धसेन दिवाकर ने सन्मति प्रकरण (सम्मइपयरण) ग्रन्थ की रचना की है । प्रस्तुत ग्रन्थ में नयों का विस्तृत विवेचन किया गया है । नयों का स्पष्ट एवं सुबोध विवेचन होने के कारण बाद के सभी आचार्यों ने सन्मति प्रकरण का ही अनुसरण किया है । इस ग्रन्थ की टीका आचार्य मल्लवादी द्वारा लिखी गई थी ऐसा उल्लेख आचार्य हरिभद्रसूरिजी ने अपने दार्शनिक ग्रन्थ अनेकान्तजयपताका की टीका में किया है ।" अद्यावधि यह ग्रन्थ उपलब्ध नहीं १९ । इस विषय में एक और उल्लेख हमें बृहटिप्पणिका नामक ग्रन्थ में मिलता है । वहाँ कहा गया है कि सम्मईपयरण की टीका का प्रमाण ७०० श्लोक परिमाण है । इस आधार पर हम यह कह सकते हैं कि बृहट्टिप्पणिकाकार ने यह टीका देखी होगी अर्थात् १२वीं शती तक तो प्रस्तुत टीका विद्यमान थी किन्तु बाद में कोई ग्रन्थभण्डार में ही नष्ट हो गई हो ऐसा भी सम्भव है । आज तो हमारे सामने केवल कल्पना ही करना शेष है । द्वादशार - नयचक्र के चतुर्थ अर के अन्त में सन्मति की एक कारिका उद्धृत है और उसका विवेचन भिन्न शैली से किया गया है । जो उपलब्ध टीका से भिन्न है; इससे भी यह पुष्ट होता है कि आचार्य मल्लवादी ने सन्मतिप्रकरण के ऊपर टीका तो लिखी ही होगी किन्तु यह कृति १. उक्तं च वादिमुख्येन मल्लवादिना सम्म (न्म) तौ । उक्तं च वादिमुख्येन - श्री मल्लवादिना सम्म (न्म) तौ ॥ २. " सन्मतिवृत्तिर्मल्लवादिकृता ७००, बृहट्टिप्पनिका ।" ३. ते पिच संग्रहाः संग्रहेण त्रिविधा भवन्ति द्रव्य-स्थित-नय-प्रकृतयः । द्रव्य - प्रकृतयः, कर्म-पुरुषकाराद्येकान्तवादाः स्थित-प्रकृतयः पुरुष - काल-नियत्यादिवादाः, नयप्रकृतयः प्रकृतीश्वरादिकारणवादाः ॥ द्वा० न० वृ००, पृ० ३७३. तुलनीय: Jain Education International अनेकान्तजयपताका, पृ० ५८. वही, पृ० ११६. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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