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________________ १७६ जैन परम्परा में नयों के वर्गीकरण की विभिन्न शैलियाँ रही हैं । (१) वर्गीकरण की संक्षिप्त शैली - इसके अन्तर्गत सामान्यरूप से द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक, निश्चय-व्यवहार, व्युच्छित्त-अव्युच्छित्त आदि रूपों में नयों के दो विभाग किए गए हैं । द्वादशार- नयचक्र का दार्शनिक अध्ययन (२) वर्गीकरण की मध्यम शैली - इसमें सामान्य और विशेष को ही आधार बनाकर नयों के चतुर्विध, पञ्चविध, षड्विध, सप्तविध आदि भेद किए गए हैं । (३) वर्गीकरण की विस्तृत शैली - यह शैली वर्तमान में प्रचलित नहीं है, किन्तु प्राचीन काल में यह शैली अस्तित्व में रही होगी । क्योंकि सप्तशतार- नयचक्र होने का उल्लेख भी प्राप्त हुआ है जिसके आधार पर हम कह सकते हैं कि विभिन्न दृष्टिकोणों के आधार पर नयों का विभाजन सात सौ रूपों में भी किया जाता था । किन्तु वर्त्तमान युग में नयों के वर्गीकरण के संक्षिप्त और मध्यम रूप ही प्रचलित हैं । आगमकाल में नय विभाजन I प्राचीन अर्धमागधी आगम साहित्य में सर्वप्रथम नयों की चर्चा व्याख्याप्रज्ञप्ति अपर नाम भगवतीसूत्र ( ईस्वी २ - ३ शती) में देखने को मिलती है । इसमें सामान्य रूप से द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक तथा निश्चय और व्यवहार नयों की चर्चा हुई है । द्रव्यार्थिक नय वह दृष्टिकोण है जो सत्ता के शाश्वत पक्ष को, दूसरे शब्दों में द्रव्य को ही अपना विषय बनाता है । जबकि पर्यायार्थिक नय सत्ता या द्रव्य के परिवर्तनशील पक्ष को, जिसे परम्परागत शैली में पर्याय कहा जाता है, अपना विषय बनाता है । व्याख्याप्रज्ञप्ति में इनके लिए अव्युच्छित्ति - नय और व्युच्छित्ति - नय शब्द का भी प्रयोग किया गया है । जो द्रव्यार्थिक नय है, उसे ही अव्युच्छित्ति - नय कहा १. छारिया णं भंते ! पुच्छा ! गोयमा ! एत्थ दो नया भवंति, तं जहां- नेच्छिइयनए य वावहारियनए य । वियाहपण्णत्तिसुत्तं, सं० पं० बेचरदास दोशी, श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई १९७८, पृ० ८१४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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