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________________ सत्ता की वाच्यता का प्रश्न १६५ के संकेतक तो होते हैं किन्तु वास्तविक पहाड़ और नदी का पूर्णतया बोध नहीं करा पाता है। जिसने नदी न देखी हो वह नदी शब्द सुनकर भी नदी का सम्पूर्ण बोध नहीं कर पाता है। _शब्दों की वाच्यता-सामर्थ्य की सीमितता का एक कारण यह भी है कि जितने वाच्य विषय हैं भाषा में उतने शब्द नहीं हैं । उदाहरण के रूप में मीठा शब्द में वस्तु के मिष्ठता गुण की अभिव्यक्ति की सामर्थ्य तो है किन्तु हम देखते हैं कि मिठाश अनेक प्रकार की होती है जैसे आम भी मीठा होता है, अमरूद की मीठा होता है, अंगूर भी या इसी प्रकार सैकड़ों वस्तुएँ मीठी होती हैं, किन्तु हमारे पास उन सभी की मिष्ठता को अभिव्यक्त करने के लिए एक ही शब्द मिष्ठ है । यहाँ हम देखते हैं कि मिष्ठ शब्द का प्रयोग जब भिन्नभिन्न वस्तुओं के संदर्भ में होता है तब उसका वाच्यार्थ भी अलग-अलग होता है किन्तु भाषा में इतने शब्द-प्रतीक नहीं होते अतः किसी वस्तु का मिष्ठपन मिष्ठ शब्द से वाच्य होकर भी अवाच्य बना रहता है । इसी प्रकार हम प्रेम शब्द को लें तब प्रेम शब्द जिस भावना को अभिव्यक्त करता है उसकी प्रगाढ़ता और भाव-प्रणवता के अनेक स्तर हैं । एक प्रेमी अपनी प्रेयसी से, एक पुत्र अपनी माता से, एक भाई अपने भाई से, एक मित्र अपने मित्र से, 'मैं तुमसे प्रेम करता हूँ' इस शब्दावली का प्रयोग करते हैं किन्तु इन सभी व्यक्तियों के द्वारा प्रयुक्त इन शब्दावली का अर्थ एक होकर भी अलग-अलग होता है । अर्थबोध में न केवल शब्द ही महत्त्वपूर्ण भूमिका निर्वाह करता है अपितु श्रोता और वक्ता के मानसिक स्तर भी अपना अर्थ रखते हैं । एक व्यक्ति किसी वाक्य का व्यंगार्थ ग्रहण कर पाता है और दूसरा व्यक्ति उसे ग्रहण नहीं कर पात है । पुनः एक भाषा का जानकार व्यक्ति दूसरी भाषा के शब्दों से कोई अर्थबोध ग्रहण नहीं कर पाता है । इससे यह कल्पित हो सकता है कि शब्द में आंशिक रूप में ही अपने विषय को वाच्य बनाने की सामर्थ्य है । यही कारण है कि भारत में प्राचीनकाल से ही भाषा के वाच्यसामर्थ्य पर प्रश्न चिह्न लगाया गया है। भारतीय चिन्तन में प्रारम्भ काल से लेकर आज तक वस्तु की वाच्यता और अवाच्यता का प्रश्न मानव मस्तिष्क को झंझोड़ रहा है । जब यही वाक्यार्थ सामर्थ्य की बात चरम सत्ता या परम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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