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________________ १५८ द्वादशार-नयचक्र का दार्शनिक अध्ययन शब्द से अर्थ का बोध किस प्रकार होता है ? इस समस्या के समाधान में वैयाकरणों का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है । उनका सिद्धान्त स्फोटवाद कहलाता है । आचार्य मल्लवादी ने वैयाकरणों के इस सिद्धान्त की विस्तृत समीक्षा की है । अतः इस सिद्धान्त के सामान्य स्वरूप को समझ लेना आवश्यक है । वैयाकरणिकों के अनुसार पद या वाक्य को सुनकर पद या वाक्य के वाच्यार्थ का एक समन्वित चित्र खड़ा होता है वही स्फोट है। शब्द के वाच्यार्थ को प्रगट करनेवाला तत्त्व ही स्फोट कहलाता है । 'स्फुटति अर्थो यस्मात् स स्फोटः' । हम देखते हैं कि स्फोटवादियों ने किसी सीमा तक मीमांसकों और बौद्धों की अवधारणा में रही हुई कठिनाईयों को दूर करने का प्रयत्न किया है। वस्तुतः शब्द से जिसका बोध होता है वह भौतिक अर्थ नहीं अपितु बुद्ध्यर्थ है । वह स्फोट ध्वनियों के श्रवण से जन्मा एक मानस बोध है। ध्वनि तो अनित्य है वह उत्पन्न होकर नष्ट हो जाती है, अतः वह अर्थबोध कराने में असमर्थ है । वस्तुतः ध्वनि को सुनकर मानस में जो अर्थ का बोध होता है वही अर्थ का बोध है । ध्वनि क्रमशः होती है । प्रत्येक ध्वनि से एक प्रकार का संस्कार उत्पन्न होता है । उस संस्कार से सहकृत अन्त्य वर्ण के श्रवण से एक मानसिक वर्ण की प्रतीति उत्पन्न होती है । चेतना में एक मानस प्रतिबिम्ब खड़ा होता है और वही स्फोट है। इस प्रकार हम देखते हैं कि वैयाकरणियों ने शब्द का वाच्य भौतिक अर्थ न मानकर बुद्ध्यर्थ को माना किन्तु कठिनाई यह है कि उनका यह बुद्ध्यर्थ या ध्वनि के स्मरण से उत्पन्न होनेवाला मानस प्रतिबिम्ब का बाह्य जगत् की यथार्थ वस्तु के साथ किस प्रकार सम्बन्ध है यह स्पष्ट नहीं होता है। उन्होंने शब्द और उसके भौतिक वाच्यार्थ के मध्य एक सेतु बनाने का प्रयास तो किया किन्तु वे इस प्रयत्न में कितने सफल हुए यह गहन समीक्षा का विषय है जिस पर हम आगे चर्चा करेंगे । किन्तु यहाँ इतना अवश्य बता देना चाहते हैं कि भारतीय दार्शनिकों ने शब्द और उसके वाच्यार्थ को लेकर जो विभिन्न मत प्रस्तुत किए हैं उनके मूल में कहीं न कहीं. अर्थ के अर्थ को लेकर ही मतभेद है। किसी के अनुसार अर्थ भौतिक है, किसी के अनुसार अर्थ भौतिक वस्तु का मानसिक प्रतिबिम्ब है तो किसी के अनुसार अर्थ मात्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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