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________________ क्रियावाद - अक्रियावाद १३३ मात्र इतना ही नहीं यदि हम कर्म विपाक को ईश्वर आदि किसी अन्य के अधीन मानेंगे तो न केवल पुरुषार्थवाद की हानि होगी अपितु ईश्वर के स्वरूप में भी हानि होगी । यदि ईश्वर किसी व्यक्ति को शुभाशुभ फल अपनी इच्छा के अनुसार प्रदान करेगा तो फिर फल संकटता का प्रसंग उपस्थित होगा और ईश्वर अन्यायी सिद्ध होगा । यदि वह प्राणियों के कर्मों के आधार पर ही उनके शुभाशुभ कर्मों का फल देता है ऐसा माना जायेगा तो ईश्वर की स्वतन्त्रता खण्डित हो जायेगी । दूसरे शब्दों में कर्म और उसके फलभोग के बीच ईश्वर आदि किसी अन्य तत्त्व की उपस्थिति भी समुचित प्रतीत नहीं होती है । आत्मा स्वतः अपने शुभाशुभ कर्म का कर्त्ता और उसके फल का भोक्ता है? यही अवधारण एक ऐसी अवधारणा है जो नैतिक व्यववस्था के लिए आवश्यक और इसी के आधार पर बन्धन और मोक्ष की अवधारणा को सम्यक् प्रकार से समझाया जा सकता है । अक्रियावाद क्रियावाद से भिन्न दूसरी अवधारणा अक्रियावाद कहलाती है । अक्रियावाद की तात्विक विवेचना करते हुए सूत्रकृतांग टीका में कहा गया है जो जीवादिक पदार्थों की स्वतन्त्र सत्ता को स्वीकार नहीं करते हैं वे वादी अक्रियावादी कहलाते हैं । इसी आधार पर सूत्रकृतांग की ही टीका में चार्वाक, बौद्ध आदि को भी अक्रियावाद में समाहित करते हैं । दूसरे शब्दों १. आद्यन्तवद् मध्ये पि ईश्वर प्राधान्यादीश्वरवशाद् प्रवृत्तौ फलसंकर प्रसंगः, तत्प्रसक्तौ क्रियाविलोप:, ततश्च सर्वनिर्मोक्षः सर्वानिमोक्षो वा । द्वादशारं नयचक्रं, पृ० ३४३ २. मनसा वाचा कायेन वापि युक्तस्य वीर्यपरिणामः । जीवस्यात्मनि यः खलु स योगसंज्ञो जिनैईष्टः || तेजोयोगाद् यद्वद् रक्तत्वादिर्घटस्य परिणामः । जीवकरणप्रयोगे वीर्यमपि तथात्मपरिणामः ॥ जोगेहि तदणुरूवं परिणमयति गेण्हितूण पंचतणू | पाउग्गे वालंबति भासाणमणत्तणे खंधे || कर्मप्र० गा० १७ ३. नास्त्येव जीवादिकः पदार्थ इत्येवं वादिषु । ४. ते चार्वाक - बौद्धादयो क्रियावादिन एवमाचक्षते । Jain Education International For Private & Personal Use Only द्वा० न० टीका० पृ० ३४९ सूत्रकृतांग श्रु० १ अ० १२ वही० श्रु० १, अ० १२ www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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