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________________ करते थे। इसीलिए वे क्रियावाद-अक्रियावाद १२९ देते थे ।१ किन्तु क्रियावाद की यह व्याख्या नैतिक-दृष्टि या साधना-मार्ग की दृष्टि से ही की जाती थी । जैन दार्शनिक अपनी अनेकान्तवादी दृष्टि के आधार पर मोक्ष की प्राप्ति में ज्ञान और क्रिया दोनों को समानरूप से स्वीकार करते थे। इसीलिए वे क्रियावादियों को भी मिथ्यादृष्टि के वर्ग में वर्गीकृत करते थे। किन्तु क्रियावाद का एक ऐसा भी अर्थ था जिसके आधार पर जैन-विचारक अपने को क्रियावादी वर्ग का सदस्य मानते थे । भगवती आदि में भ० महावीर ने स्वयं अपने को क्रियावादी कहा है । क्रियावाद का जो दूसरा अर्थ है वह अर्थ तत्त्वमीमांसा के आधार पर किया जाता है। स्थानांगसूत्र के चतुर्थ स्थान में क्रियावादी आदि चार वर्गों का उल्लेख उपलब्ध होता है उसकी टीका में आचार्य अभयदेव क्रियावाद का अर्थ स्पष्ट करते हैं कि जीवादि पदार्थ सत् है ऐसा माननेवाले क्रियावादी हैं । इस प्रकार तत्त्वमीमांसीय दृष्टि से जीवादि पदार्थों की सत्ता को स्वीकार करनेवाली दार्शनिक परम्पराएँ क्रियावाद के वर्ग में समाहित की जाती थीं । जो विचारक जीव और जगत् दोनों को ही सत् मानते थे वे दार्शनिक-दृष्टि से क्रियावादी वर्ग में समाहित किए जाते थे । यद्यपि हमें यहाँ स्मरण रखना चाहिए कि मात्र जीवादि पदार्थों के स्वीकार करने से ही कोई परम्परा क्रियावाद के अन्तर्गत नहीं आ जाती है । क्रियावाद के लिए जीव आदि पदार्थ की सत्ता को तो मानना ही होता है, किन्तु उसके साथ-साथ यह मानना भी आवश्यक है कि जीवादि पदार्थ में जो परिणाम या पर्याय होते हैं वे भी सत् हैं । इस प्रकार आत्मा बाह्यार्थ और उनकी विविध पर्यायों को जो दार्शनिक परम्पराएँ सत् . १. सूत्रकृतांगसूत्र टीका । श्रु० ६ अ०, तथा २ श्रु०, ३ अ० २. नाणं पयासगं सोहओ तवो संजमो य गुत्तिकरो । तिण्डंपि समाजोगे, मोक्खो जिणसासणे भणिओ | - आवश्यकनियुक्ति० श्लो० १०३ ३. तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम्, स्वोपज्ञभाष्य-टीकालंकृतम् पृ० ११२ ४. क्रियां जीवाजीवादिरों स्त्रीत्येवं रूपां वदन्ति इति क्रियावादिनः । स्था० ४.१.८.३ जीवादिपदार्थसद्भावो स्त्येवेत्येवं सावधारणक्रियाभ्युपगमो येषां ते अस्तीति क्रियावादिनः ।. सूत्र० शी० १।१२ क्रिया कर्ता विना न सम्भवति, सा चात्मसमवायिनीति वदन्ति तच्छीलाश्च ये ते क्रियावादिनः । भगवती० अभ० ३०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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