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________________ ११७ द्रव्य-गुण-पर्याय का सम्बन्ध रूप आदि को गुण कहा गया है, और उसकी भिन्न-भिन्न अवस्थाएँ पर्याय हैं । साथ ही गुण युगपद् होता है, पर्याय अयुगपद् है । द्रव्य में गुण एक साथ होते हैं और पर्याय क्रमभावी होते हैं । अर्थात् पर्याय उत्पन्न होती है और नष्ट होती रहती है । टीकाकार ने नय की व्याख्या में द्रव्य का लक्षण करते हुए उसे अनेकान्त और एकात्मक दोनों ही माना है। अपने अनेक सत्तात्मक गुणों की दृष्टि से वह अनेकात्मक है किन्तु एक समय में एक विशिष्ट पर्यायवाला होने के कारण वह एकात्मक है । उसमें एकात्मक और अनेकात्मक दोनों ही अनुस्यूत है अन्यत्र उन्होंने सत्ता के छ: लक्षण दिए हैं जो हैं-अस्तित्ववान है, होती है, विद्यमान है, नष्ट होती है, परिवर्तित होती है, सन्निपात स्वरूप है वह सत्ता है ।२ मल्लवादी के टीकाकार सिंहसरि ने द्रव्य का लक्षण करते हुए अपनी टीका में सन्मति तर्क की एक गाथा उद्धृत की है उसके अनुसार न तो पर्यायों से रहित द्रव्य होता है और न तो द्रव्य से रहित पर्याय होती है अतः उत्पाद, स्थित और ध्रौव्य द्रव्य के लक्षण हैं । __आगे हम जैनदर्शन के इस दृष्टिकोण की किञ्चित् विस्तार से चर्चा करेंगेद्रव्य, गुण, पर्याय तत्त्वार्थसूत्र के सर्वार्थ-सिद्धि मान्य पाठ में "सत् द्रव्य-लक्षणम्' करके द्रव्य और सत् में अभेद स्थापित किया गया है । सामान्य रूप से जो अस्तित्ववान है वही द्रव्य है और अपने इस अस्तित्व लक्षण की दृष्टि से सत् १. द्रव्यस्यनेकात्मकत्वेऽन्यतमात्मकैकान्त परिग्रहो नयः, स्वप्राधान्येनार्थनयनान्नयः । वही. ३४ २. अस्ति-भवति-विद्यति-पद्यति-वर्ततयः सन्निपातषष्ठाः सत्तार्थाः । द्वादशारं नयचक्रं, पृ० ३२४ ३. दव्वं पज्जववियुतं दव्वषिजुत्ता य पज्जवा णल्थि । उत्पाद-दिदति-भंगा हंदि दविय लक्खण एयं ॥ १.१२॥ द्वादशारं नयचक्रं टीका० पृ० ७९३ ४. तत्त्वार्थसूत्र ५.२९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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