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________________ द्रव्य-गुण-पर्याय का सम्बन्ध ११५ पर्याय में भेद ही मानते हैं अन्त में उस अनेकान्तवादी दृष्टि की चर्चा करेंगे जो द्रव्य, गुण और पर्याय में अभेद और भेद दोनों मानते हैं। समालोच्य ग्रन्थ द्वादशार नयचक्र में आo मल्लवादी ने वैशेषिकसूत्र के अनुसार द्रव्य की परिभाषा की है ।१ वैशेषिकसूत्र में द्रव्य के तीन लक्षण किए गए हैं, जो क्रियावान्, गुणवान और समवायीकरण है वही द्रव्य है ।२ अन्य प्रसंग में द्रव्य को सामान्य-विशेषात्मक भी कहा गया है । अन्यत्र द्रव्य, गुण और कर्म में निहित अर्थ या पदार्थ को सत्ता कहा गया है। इस प्रकार यहाँ सत्ता, और द्रव्य, गुण कर्म में अन्तरनिहितता और दूसरी ओर भेद स्वीकार किया गया है। किन्तु जहाँ सत् के भेद का प्रश्न है वहाँ स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि जो वर्तमान और नित्य है तथा जिसका प्रलय नहीं होता है वह सत् है । अन्यत्र यह भी कहा गया है कि क्रिया और गुण का जिसमें अभाव है वह असत् है ।६ इसका तात्पर्य यह है कि जिसमें गुण और कर्म या क्रिया पाई जाती है वही सत् है । इस प्रकार वैशेषिक दर्शन में जो सत् की परिभाषा दी गयी है वह साधरणतया तो जैनदर्शन के द्रव्य की परिभाषा के निकट पाई जाती है । किन्तु उसमें मूलभूत अन्तर यह है कि जहाँ जैनदार्शनिक गुण और कर्म या पर्याय की सत्ता को द्रव्य से विभक्त नहीं मानते हैं वहाँ वैशेषिकदर्शन द्रव्य को गुण और पर्याय से भिन्न एक स्वतन्त्र पदार्थ मानता है। उनके अनुसार द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष आदि सब एक-दूसरे से स्वतन्त्र सत्ता रखते हैं । . द्वादशार नयचक्र में लौकिकवाद का अनुसरण करते हुए द्रव्य या वस्तु १. तत्र द्रव्यमपि भवनलक्षणं युगपद्युगपद्भेदभाविमृद्भवन परमार्थरूपादि शिवकादिवृत्ति व्यापि । द्वादशारं नयचक्रं, पृ० १५ २. क्रियावद-गुणवत्-समवायिकारणमिति द्रव्य लक्षणम् । वही, टीका, पृ० १५ ३. अर्थविषयं सामान्यम्, अर्थविषयश्च विशेषः । वही, पृ० १८ ४. द्रव्य-गुण-कर्मसु द्रव्य-गुण-कर्मभ्योऽर्थान्तरं सा सत्ता । वही, पृ०६ ५. वर्तमानं नित्यं न प्रलयभाक् सत् वर्तते । वही, पृ० ३४ ६. क्रियागुणव्यपदेशाभावादसत् । वही, टीका, पृ० ३५ ७. गुणपर्यायवत् द्रव्यम् । तत्त्वार्थसूत्र ५।३७ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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