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________________ १०५ इससे यह बात स्पष्ट होती है कि समस्त द्रव्य अपनी-अपनी जाति में स्थिर रहते हुए भी, निमित्तानुसार उनमें उत्पाद एवं व्यय स्वरूप परिवर्तन होते रहते हैं । इसके आधार पर यह सिद्ध होता है कि प्रत्येक पदार्थ मूल जाति की अपेक्षा से ध्रौव्य और परिणाम की अपेक्षा से उत्पाद और व्ययात्मक है अर्थात् एक ही पदार्थ में स्थिति - उत्पाद और व्यय तीनों परस्पर विरोधी धर्म रहते हैं फिर भी उसमें कोई बाधा नहीं आती । ३ सत् के स्वरूप की समस्या इस चर्चा के आधार पर कह सकते हैं कि भारतीय दार्शनिक परम्परा में सत् के स्वरूप को विभिन्न दार्शनिकों ने भिन्न-भिन्न रूप से व्याख्यायित किया है उन सब दर्शनों से जैनदर्शन के सत् का स्वरूप भिन्न ही है । जैसे ब्रह्मवादि वेदान्त दार्शनिकों ने केवल ब्रह्म को ध्रुव यानि नित्य माना है । क्षणिकवादि बौद्धों ने सत् को निरन्वय क्षणिक याने उत्पाद विनाशशील ही माना है। सांख्यों ने सत् को दो रूपों में विभक्त किया है- पुरुष और प्रकृति । पुरुष को केवल ध्रुव याने कूटस्थ नित्य और प्रकृतिरूप सत् को परिणामी नित्य इस तरह सत् को नित्यानित्य स्वरूप माना है ।" न्याय - वैशेषिकों ने अनेक सत् में से परमाणु, काल, आत्मा आदि को कूटस्थ नित्य और घटपटादि को उत्पाद - व्ययशील माना है। इन सब दर्शनों से जैनदर्शन ने अलग हटकर सत् की व्याख्या अपने ढंग से नए स्वरूप में प्रस्तुत की है । वस्तु उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यात्मक हैं और यह स्वरूप त्रिकाला - बाधित है। १. स्वजातित्वापरित्यागपूर्वक परिणामान्तरप्राप्तिरूपत्वमुत्पादस्य लक्षणम् । अर्हत्दर्शन दीपिका, पृ० १९४, स्वजातित्वापरित्यागपूर्वक पूर्वपरिणामविगमरूपत्वं, व्ययस्य लक्षणम् । वही०, पृ० १९५. २. स्वजातिस्वरूपेण व्ययोत्पादाभावरूपत्वम्, स्वजातित्वरूपेणानुगतरूपत्वं वा धौव्यस्य लक्षणम् । वही०, १९६. ३. उत्पाद - व्यय - ध्रौव्ययुक्तत्वं पदार्थस्य लक्षणम् । वही०, ४. आर्हतदर्शनदीपिका, पृ० १३. ५. षड्दर्शनसमुच्चय, पृ० १५२ - १५३. ६. वही, पृ० ४०६-४११. ७. तत्त्वार्थसूत्र, ५ / २९. Jain Education International १९३. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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