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________________ २७ सत् के स्वरूप की समस्या २. सत् के परिवर्तनशील या अपरिवर्तनशील होने का प्रश्न (क) सत् निर्विकार एवं अव्यव है । (ख) सत् परिवर्तनशल या अनित्य है। ३. सत् के भौतिक या आध्यात्मिक स्वरूप का प्रश्न (क) भौतिकवाद (ख) अध्यात्मवाद डॉ० सागरमलजी ने सभी भारतीय दर्शनों की सत् सम्बन्धी अवधारणा ___ को स्पष्ट करते हुए कहा है कि १. चार्वाक दर्शन सत् को भौतिक, परिणामी एवं अनेक मानता है । २. प्रारम्भिक बौद्ध दर्शन के अनुसार सत् परिवर्तनशील, अनित्य, अनेक तो है, किन्तु वह भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों है । ३. बौद्ध दर्शन के विज्ञानवाद सम्प्रदाय के अनुसार सत् आध्या त्मिक, अद्वय एवं परिवर्तनशील है। ४. बौद्ध दर्शन के माध्यमिक (शून्यवाद) सम्प्रदाय के अनुसार परमार्थ न परिणामी है और न अपरिणामी वह एक भी नहीं हैं और अनेक भी नहीं है । उसे नि:स्वभाव कहा गया है । जैन दर्शन में सत् को पर्यायदृष्टि से परिवर्तनशील, द्रव्यदृष्टि से ध्रौव्य लक्षण युक्त, भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों प्रकार का तथा अनेक माना गया है। सांख्य दर्शन सत् को भौतिक-प्रकृति एवं आध्यात्मिक (पुरुष) दोनों प्रकार का मानते हैं । साथ ही वह प्रकृति के सम्बन्ध में परिणामवाद को और पुरुष के सम्बन्ध में अपरिणामवाद को स्वीकार करता है। १. वही, पृ० १८४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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