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________________ ९२ द्वादशार-नयचक्र का दार्शनिक अध्ययन विश्वरचना में प्रयोजन का अभाव है तो ईश्वर को निष्प्रयोजन चेष्टा करनेवाला मानना होगा । सप्रयोजन चेष्टा से वीतरागता की हानि होगी । अतः सृष्टि-रचना के द्वारा भी ईश्वर की सिद्धि नहीं हो सकती । द्वादशारनयचक्र में कहा गया है कि ईश्वर कर्म के अनुसार प्राणी को सुख या दुःख देते हैं तब प्रश्न यह उठता है कि ईश्वर सत्कर्म के आधार पर फल देता है या असत् कर्म के आधार पर ? कर्म को सत् मानने पर कर्म ईश्वर से पूर्व भी अवस्थित माना जायेगा तब तो वह सत् ईश्वरात्मक ही बन जायेगा; कयोंकि एक ही परम् तत्त्व को माना गया है और यदि यह माना जाये कि कर्म असत् था और ईश्वर से उसकी उत्पत्ति हुई तब भी कर्म ईश्वर से उत्पन्न होने के कारण ईश्वरात्मक बन जायेगा अर्थात् सत् या असत् ऐसे दोनों पक्ष में ईश्वर और कर्म में अभेद ही सिद्ध होता है ।२ । नयचक्र में यह भी प्रश्न उठाया गया है कि ईश्वर प्राणियों को फल देता है तब वह कर्म की अपेक्षा रखे बिना ही प्राणियों को सुख-दुःख देता है; तब तो प्राणियों को नियमन करनेवाले कर्म के अभाव में इन्द्रिय उपभोग, अभ्युदय, पतन, मोक्ष आदि की सिद्ध ही नहीं हो पायेगी । यह माना जाये कि वह कर्म की अपेक्षा रखकर फल देता है तब तो उसका ऐश्वर्य ही नष्ट हो जायेगा । इस प्रकार नयचक्र में ईश्वरवाद की अनेक सीमाओं का कथन किया गया है। यहाँ यह बात स्मरणीय है कि नैयायिकों ही ने अनेक तर्कों से ईश्वर को कारण तो सिद्ध किया है किन्तु उपादान कारण न मानकर निमित्त कारणा माना है । यही बात वैशेषिकों ने भी की है। इसके विपरीत ब्रह्मसूत्र में शंकर आदि आचार्यों ने नैयायिक और वैशेषिक सम्मत निमित्तकारणवाद का प्रबल विरोध करके ईश्वर को जगत् का अधिष्ठाता और उपादान सिद्ध किया है । १. वही, स्त० ३. २. ईश्वरात्तु कर्मणः प्रवर्तनं किं सतः असतः । तद्यद्यभूतस्य ततो द्वैतं तस्यापि तदात्मकत्वात् । ' भूतस्य चेत् प्रागपि तदस्ति, तच्च ईश्वरात्मैव तथाभूतेस्तथाप्रवृत्तेस्तदापत्तेः, तथाऽपि सुतरामद्वैतम् तदात्मकत्वादेव । अथ यस्मै प्रवर्त्यते यथा तस्मात् तहि तत् तथाभूतं - तद्वशात् तथेश्वरप्रवृतेः, ततस्तस्य प्रवर्तने स एवेश्वरः । द्वादशारं नयचक्रम्, पृ० ३३६-३३९. ३. द्वादशारं नयचक्रम, पृ० ३४०-३४५. ४. न्यायावतारवातिर्कवृत्ति, टिप्पणानि, पृ० १९१. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001955
Book TitleDvadashar Naychakra ka Darshanik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJitendra B Shah
PublisherShrutratnakar Ahmedabad
Publication Year2008
Total Pages226
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Epistemology
File Size11 MB
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