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________________ पृष्ठ नं. | पुणब्भव | पुष्फ पीढ शब्द पृष्ठ नं. |शब्द पृष्ठ नं. शब्द पारंचिय (त) २/२४५,३७८,३७९ |पिट्ट १/५०६ | पुढवी महाभूत १/१५४ पारंचिय पायच्छित्तारिहा २/३७८ | पिट्टण १/१७५ | | पुढवीहिंसा विवाद १/२८९,२९० पारंचियारिह २/३५२ | पिट्ठिमंस १/५३३ | पुढोवेमाया २/४३५ पालु-किमिय १/२६२,२६४,२६६, पिटुंत १/१०,४११ २/२१८ २६९,२७२,२७६,३४४,३४७,३५० | पिण्णा १/१५१ | पुण्ण १/६१,६२,१२०,१२१,१२५, पालंब १/६५४ | पिपीलिअंड १/२८७ १२६,१४६,१९०,५३३ पाव १/६१,१२५,१२६,१४६,१५३, | १२५.१२६.१४६.१५३, | पिप्पलग (य) १/२७८,२७९,७३५; | पुण्णरुवा १/१२१ १६०,१७०,१९०,१९१; २/४५९ २/३३१ पुण्णावभासा १/१२० पाव (ए) १/१७२,१७९ | पिप्पलि १/४८४,५८४ | पुत्तदोहलट्ठाय १/३३८ पावकम्म १/१८०,४५५; पिप्पलिचुण्ण १/४८४,५८४ १/२४२,५९७,६४३,६४५ २/४४,१३३,२९२,४५८ | पिय? १/१२१ पुष्फमालिय १/४१९ पावकम्मविरय १/४४६ | पियधम्म १/५२; २/३६४ | पुष्फवीणिय १/४६१,४६२ पावकम्मोवएस २/१२८ | पिलग(य) १/२६७ पुष्फसुहुम १/२८५,२८६; २/९१ पावकारी १/४५६ | पिलाग २/४४१ | पुमत्तट्ठा नियाण करण २/१८२ पावग (य) १/६१,९०,१५२,१५४,१६८ | | पिलंखुपवाल १/५८४ | पुमवयू १/५१५,५१७,५१८ पावजीवी २/२४१ पिवासा परीसह २/४२१,४२२ | पुमिथिवेय २/४७१ पावठाण १/२१४ पिसुण १/९१,१७४,२१४ | पुयावइत्ता पावधम्म १/१०५ | पिहियासव १/२५१ | पुरओपडिबद्धा पावपरिक्खेवी १/८३,८७ पिहुय १/५८०,५८८ | पुरन्दर १/१०९ पावयणी २/३९८ १/६७७,७३४ पुराकम्म १/५७९,५८० पावसमण १/८७,१३७,२८९,६१४,६७८, | पीढसप्पि १/१६६,५३० १/१८३ ७३४,७५५;२/५०,७३,२०२,२०३,२१७, पु(पो) क्खरिणी १/१८२-१८८ | पुरिमड्ढ पच्चक्खाण सुत्तं २/११० पावाउ (दु)य १/१६२, १६८ पुच्छण १/६३० | पुरिमड्ढिए २/३०९ पावाराणि १/४१७,६८६ पुच्छणि (णी) १/५१४; २/३१९ | पुरिम-पच्छिमगा २/२२८ पावासवनिरोह १/७५३ पुट्ठलाभिए २/३०७,३०८ | पुरिस १/१८३-१८७ पावंसे १/११२ पुट्ठवागरणी २/३२० | पुरिसजा (ता) या १/८१-८२,११२-१२२, पास १/३,४,४४५; २/४२५ पुट्ठी १/२२२ १८४,१८५,१८६,१८९,२०१,२०२; पासग २/४६०,४६२ पुढविकम्मसमारंभ १/२३२ | २/२,११७,११८,१५२,१५३,१७९,२३२, पासत्थ २/२८२, ३९४,३९५ पुढवीकाइय जीवा २/१० २३३,३५१,३५२ पासत्थविहारपडिमा २/२८५ पुढवीकाइया १/५०,२२८ | पुरिसवयण १/५२० पासबद्ध १/४४५ पुढविकाइयाइ निहरण १/७०६ | पुरिसादाणिया पासरोम १/३७२,३७८,३८४, पुढविकाइयाणं वेयणा १/२३१ | पुरिसंतरकड १/६६४,६६५,६८४, ३९०,३९७,४०४ पुढविकाइय १/४६,२३०,२५६ ७०९,७१४,७४३ पासवण १/४२१,५५४,६६२,७३७, पुढविकाय आरंभ १/२८४| पुरेकम्म २/५९ ७३८,७४०-७४८;२/८६ | पुढविकाइय १/२४८ पुलागभत्त १/६१५ पासवण मत्तय २/८८ पुढविकाइयसंजम २/१५ | पुल्लिंगसद्दा १/५१५ पासंडधम्म १/३३ पुढविसत्थ १/२३२,२३३ पुवकम्म २/६२ पासंडी १/१९७| पुढविसमारम्भ २/१३९ पुव्वण्ह पाहुडसीलता २/१७६ पुढविसिल २/३२० पुव्वधर १/२२४ पिउमंद पलासय १/६२१ पुढवी १/१६२,२२९,२४९ पुव-पच्छा-संथव दोस १/५७२ पिच्छमालिय १/४१९ पुढवीजीवा १/२२९ पुवपुरिसदिटुंतेण मंदो मुणी २/४४० पिज्जदोसाणुगया २/४४९ | पुढवीथूभ १/१६० | पुवरयपुबकीलियाणं अणणुसरणया १/४२२ | पुरित्थ P-162 For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001951
Book TitleDravyanuyoga Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year2004
Total Pages814
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_related_other_literature
File Size22 MB
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