________________ परि. 21 : प्रयुक्त ग्रंथ सूची 347 ओघनियुक्ति-आचार्य भद्रबाहु, श्री आगमोदय समिति, महेसाणा, सन् 1919 / ओघनियुक्ति टीका-द्रोणाचार्य, श्री आगमोदय समिति, महेसाणा, सन् 1919 / ओघनियुक्ति भाष्य-श्री आगमोदय समिति, महेसाणा, सन् 1919 / कठोपनिषद्-सं. डॉ. बैजनाथ पाण्डेय, मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली, सन् 1977 / कौटिलीय अर्थशास्त्र-सं. वाचस्पति गैरोला, चौखम्भा विद्या भवन, वाराणसी, सन् 1991 / चारित्रसार-महावीरजी, वी नि. सन् 2488 / जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति टीका-नगीनभाई घेलाभाई झवेरी, मुम्बई, सन् 1920 / जीतकल्पभाष्य-जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण, सं. मुनि पुण्यविजय, बबलचन्द्र केशवलाल मोदी, अहमदाबाद, _ वि. सं. 1994 / जीतकल्पसूत्र-सं. मुनि जिनविजय, जैन साहित्य संशोधक समिति, अहमदाबाद, वि. सं. 1982 / जैनधर्मवरस्तोत्र-देवचंद लालभाई जैन पुस्तकोद्धार संस्था, सूरत, सन् 1933 / ज्ञाताधर्मकथा-वाप्र. आचार्य तुलसी, सं. आचार्य महाप्रज्ञ, जैन विश्व भारती, लाडनूं (राज.), सन् 2003 / दशवैकालिक अगस्त्यसिंहचूर्णि-सं. मुनि पुण्यविजय, प्राकृत ग्रन्थ परिषद्, अहमदाबाद, सन् 1973 / दशवैकालिक जिनदासचूर्णि-जिनदासगणी, श्री ऋषभदेव केशरीमल श्वे. संस्था, रतलाम, सन् 1933 / दशवैकालिक नियुक्ति (नियुक्तिपंचक)-आचार्य भद्रबाहु, वाप्र. आचार्य तुलसी, प्रसं. आचार्य महाप्रज्ञ, सं. समणी कुसुमप्रज्ञा, जैन विश्व भारती, लाडनूं (राज.), सन् 1999 / दशवैकालिक हारिभद्रीया टीका-आचार्य हरिभद्र, देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार, सूरत। दशाश्रुतस्कन्ध (नवसुत्ताणि)-वाप्र. आचार्य तुलसी, सं. युवाचार्य महाप्रज्ञ, जैन विश्व भारती, लाडनूं (राज.), सन् 1987 / दिव्यावदान-सं. डॉ. पी. एल. वैद्य, मिथिला संस्थान, दरभंगा, सन् 1959 / द्वात्रिंशद् द्वात्रिंशिका-आचार्य यशोविजय, दिव्य दर्शन ट्रस्ट, धोलका, वि. सं. 2060 / नंदी--वाप्र. आचार्य तुलसी, सं. आचार्य महाप्रज्ञ, जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूं (राज.), सन् 1997 / नियुक्ति पंचक-वाप्र. आचार्य तुलसी, प्रसं. आचार्य महाप्रज्ञ, सं. समणी कुसुमप्रज्ञा, जैन विश्व भारती, लाडनूं (राज.), सन् 1999 / निशीथ (नवसुत्ताणि)-वाप्र. आचार्य तुलसी, सं. युवाचार्य महाप्रज्ञ, जैन विश्व भारती, लाडनूं (राज.), सन् 1987 / निशीथ चूर्णि भा. १-४-सं. उपाध्याय अमरमुनि, सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा, सन् 1982 / निशीथ भाष्य भा. १-४-मुनि कन्हैयालाल, सन्मति ज्ञानपीठ, आगरा, सन् 1982 / पंचकल्पभाष्य-सं. लाभसागरगणि, आगमोद्धारक ग्रंथमाला, वि.सं. 2028 / पंचवस्तु-देवचन्द्र लालभाई जैन पुस्तकोद्धार संस्था, सूरत, सन् 1927 / पंचाशक प्रकरण-नि. प्रो. सागरमल जैन, सं. डॉ. दीनानाथ शर्मा, पार्श्वनाथ विद्यापीठ, वाराणसी, सन् 1997 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org