________________ परि. 19 : शब्दार्थ 335 302/3 87 20 94 106 304 41/1 288/4 68/11 78 11 194/1, 73/17 17/1 312/1 8 पूति-अपवित्र, साधु की भिक्षा का 58,107, बलागा-बलाका। एक दोष। 108/2,110,118,138/1,191 बलि-उपहार। पूप-मालपुआ। 255 बहुहा-बहुधा। पूयाहज्ज-पूजितपूजक। 210/2 बाउस-बकुश। पेज्ज-जौ आदि का दलिया। 297 बारस-बारह। पेयालण-प्रमाण। . 45/1 बाहिर-बाह्य। पेल्लण-प्रेरणा / 163/7 बाहिरिया-बाह्य। पेल्लिय-प्रेरित / 198/7 बाहुल्ल-बाहुल्य, प्रचुरता। पेहा-प्रेक्षा। 318/2 बिट्ठ-बैठा हुआ। पोग्गल-मांस। 40 बितिय-द्वितीय। पोत्त-लघु बालक योग्य वस्त्र-खंड। 141 बीजपूर-बिजौरा। पोत्ति-मुखवस्त्रिका, साधु का उपकरण। 22 बीय-१. बीज, पोरिसि-पौरुषी। 2. द्वितीय। पोह-भैंस आदि के मल का ढेर। 108/1 बुब्बुय-बुद्बुद। फड्डग–अंश, भाग। 113/2 बुह-बुध, ज्ञानी। फलग-फलक, साधु का उपकरण। 32 बेइंदिय-दो इंद्रिय वाला। फाणित-गुड़ का विकार विशेष। बोड-मुंडित सिर वाला। फालिय-फटा हुआ। 145 बोल-उच्च स्वर में बोलना। फासुग-प्रासुक। 162 बोहणा-बोध, ज्ञान। फुड-स्फुट, निर्मल। बोहि-बोधि। फुरुफुरंत-कांपना, थरथराना। भइय-भजना युक्त। फेडण–विनाश। 185 भंडग-पात्र। फोड-बहुभक्षक। भग्ग-भग्न। फोडण-१. स्फोटन-राई आदि से 112, भज्जण-चने आदि भूनना। शाक आदि को बघारना, भज्जा-भार्या। 2. फटना, विदारण। 168 भति-भृति, वेतन। बंधग-बंधन करने वाला। 90 भत्तय-भोजन। बंभ-ब्रह्मचर्य। भद्दग-भद्रक, अच्छा / बंभचेरगुत्ति-ब्रह्मचर्य की गुप्तियां। 320 * भमाड-घुमाना। बंभबंधु-ब्राह्मण। 210/1 भयणा-भजना। बगुड्डाव-बकोड्डायक, एक प्रकार का भयय-भूतक, कर्मकर। महिला प्रधान पुरुष। 219/6 भर-समूह। बष्फ-वाष्प। 116/1 भरग-भरा हुआ। 103 50 283 106 219/8 214/1 148 73/20 17/1 198/15 281 223 173/2 76/4 211 228/1 66/1 173 61/1 20 255 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org