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परि. ८ : प्रयुक्त देशी शब्द
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चोलपट्ट–साधु का उपकरण। (वृप. १३) डगलग-पक्की ईंट आदि के टुकड़े-डगलकाःचोल्लग-भोजन-चोल्लकम्-भोजनम्।
__पक्वेष्टकानां खण्डानि। (गा. २५ वृप. १७) (गा. १७८ वृप. ११३) डाय-शाक-डायं शाकं। (गा. ११२ वृप. ८४) छगण-गोबर-छगणं-गोमयः।
डुंब-महावत-डुंबस्य-मिण्ठस्य। (गा. १६२ वृप. १०५)
(गा. १८५ वृप. ११५) छगलग-बकरा। (गा. १४३/२) डाय-शाक
__ (गा. ११२) छब्ब-बांस का बना हुआ पात्र विशेष (गा. २५९)। डोय-डोयः-बृहद्दारुहस्तक: महांश्चट्टक इत्यर्थः । छब्बक-बांस का बना हुआ पात्र विशेष।
(गा. ११२ वृप. ८४) (वृप. १५५) ढक्कित-ढ़का हुआ।
(गा. ७७) छाय-बुभुक्षित-छातो बुभुक्षितः।
ढड्डर-तेज आवाज। (गा. १९८/१४) (गा. ३१८/१ वृप. १७७) दिउल्लिका-पुतली।
(वृप. ६) छिंडिका-बाड़ का छिद्र। (वृप. १०५) तच्चण्णिय-बौद्ध भिक्षु। (गा. १६६/१) छिक्क-स्पृष्ट, छुआ हुआ। (गा. ८४) • तर–१. समर्थ होना। (गा. २४०/१) छिक्कार-छी-छी की आवाज से अपमानपूर्वक २. कुशल रहना-तरति-क्षेमेण वर्तते। बुलाना। (गा. २१०/४)
(गा. १९८/६ वृप. १२३) छित्त-स्पृष्ट।
(गा. २४५/२) तरिका-मलाई, पानी आदि के ऊपर जमने वाली छुन्न-क्लीब-छुन्नमुखः-क्लीबमुखः।
सतह। (गा. १९८/१४ वृप. १२५) • तिप्प-देना-तेपते क्षरति ददाति स्मेति भावार्थः । छोटि-उच्छिष्टता, जूठन। __ (वृप. १६१)
(गा. १३६/६ वृप. ९४) छोट्टि-उच्छिष्टता जूठन। (गा. २८०) • तिम्म-जल से आर्द्र करना। (गा. १६३/२) छोभग-झूठा कलंक। (गा. १९८/९) तूवरी-अरहर की दाल। (गा. २९६) जड्डु-हाथी।
(गा. १८४) थक्क-अवसर-यद् अवसरेऽवसरानुरूपमापतति तत्जल्ल-शरीर का मैल। (गा. १३६/१) थक्के थक्कावडियमित्युच्यते । जाउ-दलिया, खाद्य विशेष-जाउ-क्षीरपेया।
(गा. ७६/४ वृप. ६४) (गा. २९८ वृप. १६८) थिक्क-स्पृष्ट।।
(वृप. ६६) जुंगिय-हाथ पैर आदि अवयव से हीन-जुङ्गिताङ्गेषु • थुण-स्तुति करना।
(गा. २२५) च कर्तितहस्तपादाद्यवयवेषु।
दंडिणी-राजपत्नी-दंडिन्यौ नृपपल्यौ। (गा. २१०/२वृप. १३१)
__ (गा. २३० वृप. १४२) झंख-बार बार कहना-झष वारं वारं जल्प। दद्दर-१. कुतुप आदि का मुखबंध रूप ढक्कन
__ (गा. १३२ वृप. ९२) दर्दरकः कुतुपादीनां मुखबंधरूपः । डक्क-सांप के द्वारा डसा हुआ। (गा. १६६/२)
(गा. १६४ वृप. १०७)
__ (वृप. ९)
लंका
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