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पिंडनियुक्ति खंतिग-जनक, पिता। (गा. २७२) गोट्ठी-मित्र।
(गा. १०८/१) खंतिया-माता-खंतिकाया जनन्याः।
गोण-गाय।
(गा. २१०/४) (गा. २०१/३ वृप. १२७) गोणिय-गायों का व्यापारी। (गा. ६८७) खंती-खंति-जननीम्। (गा. २०१/२ वृप. १२७) गोणी-गाय।
(गा. ६८/७) खग्गूड-कुटिल-खग्गूड:-कुटिलः।
गोब्बर-एक गांव का नाम। (गा. ८९/२) (गा. १४६ वृप. १००) घंघसाला-कार्पटिक भिक्षुओं का आवासस्थल। खत्त-गोबर। (गा. १२ वृप. ८)
(गा. १६०) खद्ध-प्रचुर-खद्धं-प्रचुरम्। (गा. २२० वृप. १३९) घट्टग-लिप्त पात्र को चिकना करने वाला पत्थर खरंटणा-निर्भर्त्सना, उपालम्भ। (गा. ९६/१) विशेष-घट्टको-लेपितपात्रमसृणताकारक: खल्लग-पत्रपुट, दोना-खल्लकानि वटादिपत्रकृतानि पाषाणः।
(गा. १४ वृप. ९) भाजनानि दूतानि' । (गा. ९०/३ वृप. ७५) घर-गृह।
(गा. १७३/१) खिसण-निंदा।
(गा. २३१/३) घरकोइल-छिपकली। (गा. १६३/७) खिंसा-अवहेलना।
(गा. २७७) घाण-तिलपीड़न यंत्र-घाणे तिलपीडनयंत्रे। खुड्ड-क्षुल्लक शिष्य। (गा. २१९/१)
(गा. २७/१ वृप. १७) खुड्डय-छोटा शिष्य।
(गा. २१९/९) घुसुलण-दही मथना। (गा. २८८/६) खोल-गुप्तचर, जासूस-खोला:-हेरिका राज्ञा चंपित-चांपा हुआ, दबाया हुआ। (वृप. १२३)
नियुक्ताः। (गा. ६९/३ वृप. ४९) चट्टक-चम्मच-काष्ठ की कड़छी। (वृप. ८४) खोसिय-जीर्ण प्रायः-खोसिते-जीर्णप्राये। चप्पुटिका-चुटकी।
(वृप. १२५) (गा. १४५ वृप. १००) चाउल-चावल।
(गा. ९५) गड्डरक-भेड़।
(वृप. २१) चाउलोद-चावल का पानी। (गा. १९१) गड्डरिका-भेड़ी। (वृप. २१) चारी-चारा।
(गा. ९६/१) गडुल-चावल का धोवन। (वृप. २२) चिक्कण-चिकना, सघनकर्म-चिक्कणं ति अन्योगलिच्च-गले का आभूषण-गलिच्चा-गलसत्कानि न्यानुवेधेन गाढसंश्लेषरूपमात्मनि चिनोति । आभरणाणि। (गा. १९८/१३ वृप. १२५)
(गा. ४६ वृप, २७) गवत्त-गाय का भोजन, घास। (गा. ९६/२) चिमिढ-चिपटा।
(गा. १९८७) गवत्ति-घास, गाय का भोजन-गवत्ति त्ति गोभक्तः। चुडण-जीर्ण-शीर्ण, सड़ना। (गा. २१) (गा. ९६ वृप. ७८) चुल्ल-भोजन।
(गा. १८१/१) गोच्चिय-राज्य का अधिकारी, कोतवाल। चुल्लग-भोजन।
(गा. १८२) (गा. १७३/१) चुल्ली-चूल्हा।
(गा. ११३/२) गोट्ठिग-मित्र। (गा. १०८/२) चेड-बालक।
(गा. १७३/२)
१. यहां दूतानि के स्थान पर दूनानि पाठ होना चाहिए।
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