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## Pindaniyukti
**251.** Where there is a mind-object, there are four stages, and in those four stages, there are four types of fire. That which is immediately after the other, is called the 'remaining fire' by the commentators. 545 || 251/1. There is no mind-object, it is one by one, and it is without mind. There, there are four stages, and there is no fire in those stages. 546 || 251/2. But that which is without mind-object, is deposited in the mind-objects. Then, the fire is called 'inward fire', and there is a continuous succession. 547 || 251/3. The fire of the ocean is immediately after, and the fire of the earth is in succession. The fire of the new moon is immediately after, and the fire of the full moon is in succession. 548 ||
**252.** The fire of the 'Mummur' is extinguished in the 'Apatta' and the 'Patta' stages. The fire of the 'Voli' is extinguished in the 'Jant' and the 'Jatana' stages. 549 ||
**252/1.** The fire is not seen, but the fire is seen when the fuel is ignited. The fire of the 'Apingala' is extinguished in the 'Mummur' and the 'Ingala' stages. 550 ||
**252/2.** The 'Apatta' is in the fourth stage, and the 'Patta' is in the fifth stage. The 'Kanna' is in the sixth stage, and the 'Samati' is in the seventh stage. 551 ||
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पिंडनियुक्ति
२५१. जत्थ उ सचित्तमीसे, चउभंगो तत्थ चउसु वि अगिझं ।
तं तु अणंतर इतरं', परित्तऽणतं च वणकाए । ५४५ ॥ २५१/१. अहव ण' 'सचित्तमीसो, उ'३ 'एगओ एगओ" य' अच्चित्तो ।
एत्थ' 'तु चउक्कभंगो'", तत्थादितिए' कहा नत्थि ॥ ५४६ ॥ २५१/२. जं पुण अचित्तदव्वं, निक्खिप्पति चेतणेसु मीसेसु।
तहि१२ मग्गणा उ इणमो, अणंतर-परंपरा होति ॥ ५४७ ॥ २५१/३. ओगाहिमादऽणंतर ३, परंपरं पिढरगादि१४ पुढवीए।
नवणीयादि अणंतर, परंपरं नावमादीसु ॥ ५४८ ।। २५२. विज्झात मुम्मुरिंगालमेव अप्पत्त५ पत्त६ समजाले।
वोलीणे८ सत्तदुगं', 'जंतोलित्ते य जतणाए'२० ॥ ५४९ ॥दारं ॥ २५२/१. विज्झाउ त्ति न दीसति, अग्गी दीसति य इंधणे छूढे। .
आपिंगलमगणिकणा२१, मुम्मुर निजाल इंगाला२२ ॥ ५५० ॥ २५२/२. अप्पत्ता उ चउत्थे, जाला पिढरं२३ तु पंचमे पत्ता।
छठे पुण कण्णसमा, जाला समतिच्छिया चरिमे२५ ॥ ५५१ ॥
१. मियरं (क)।
१४. "रमाइ (अ, ब, क, ला, बी), “माई (स)। २. णेति वाक्यालंकारे (मवृ)।
१५. यः पुनश्चुल्या उपरि स्थापितं पिठरं ज्वालाभिर्न ३. चित्तमीसा य (ला, ब, स)।
प्राप्नोति सोऽप्राप्तः (म)। ४. इक्कओ इक्कओ (अ, क, बी, स)।
१६. ज्वालाभिः पिठरं बुघ्ने स्पशति स प्राप्तः (मव)। ५. उ (मु)।
१७. यः पुनः पिठरस्य बुघ्नादूर्ध्वमपि यावत् कर्णी ६. सच्चित्तो (ला, ब, स)।
ज्वालाभिः स्पृशति स समज्वालः (मवृ)। ७. एत्थं (स, मु)।
१८. वोक्कंते (मु), यस्य पुनर्स्थाला पिठरकर्णाभ्या८. वि चउभंगो (अ, बी, स), चउक्कभेओ (मु)। मूर्ध्वमपि गच्छन्ति स व्युत्क्रान्तः (मवृ)। ९. “दुए (अ, ब, स, ला, बी)।
१९. 'दुवे (ला, ब, स)।। १०.२५१/१-३-ये तीनों गाथाएं भाष्य की होनी चाहिए। २०. एते तु अणंतर परे य (जीभा १५२९)।
२५१ में कल्प्याकल्प्य विधि का वर्णन करके २१. “ल अगणि (ला, ब, मु, स, क)। नियुक्तिकार ने निक्षिप्त द्वार को सम्पन्न कर दिया। २२. इंगाले (क, मु), जीभा (१५३०) में इस गाथा बाद में २५१/१-३-इन तीन गाथाओं में कल्प्या - का उत्तरार्ध इस प्रकार हैकल्प्य विधि के संबंध में जो मतान्तर प्रस्तुत किया । छारुम्मीसा पिंगल, अगणिकणा मुम्मुरो होति । गया है, वे गाथाएं भाष्यकार द्वारा निर्मित होनी २३. पिढरे (अ, क, बी)। चाहिए, ऐसा संभव लगता है।
२४. समतित्थया (ला)। ११. दव्वेसु (अ, ब, क, ला, बी, स)।
२५. चरमे (क), २५२/१, २-ये दोनों गाथाएं २५२ १२. तह (अ, बी)।
वी गाथा की व्याख्या रूप हैं अतः स्पष्टतया भाष्य १३. "हिमायणं (मु), 'हिमादिणं (क, ब)।
की प्रतीत होती हैं।
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